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________________ उपरिम अर्थात् द्वितीय आवली है, उसके कर्मप्रदेश क्रोध संज्वलन की तीन और मान संज्वलन की एक इन चार संग्रह कृष्टियों में पाये जाते हैं। तदिया सत्सु किट्टीसु चउत्थी दससु होइ किट्टीसु । तेण पर सेसाओ भवंति सव्वासु किट्टीसु ॥१६REEN • तीसरी प्रावली सात कृष्टियों में, चौथी प्रावली दस कृष्टियों में और उससे आगे की शेष सर्व प्रावलियां सवं कृष्टियों में पाई जाती है। _ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिासागर जी महाराज एदे समयपबद्धा अच्छुत्ता णियमसा इह भवम्मि । सेसा भवबद्धा खलु संछुद्धा होंति बोद्धव्वा ॥१६॥ - पूर्वोक्त छहों श्रावलियों के वर्तमान भव में ग्रहण किए गए समय प्रबध्द नियम से असंक्षुध्ध रहते हैं। उदय या उदीरणा को नहीं प्राप्त होते हैं, किन्तु शेष भवबध्द उदय में संक्षुब्ध रहते हैं । एकसमयपबद्धाणं सेसाणि च कदिसु द्विदिविसेसेसु । भवसेसगाणि कदिसुचकदि कदि वा एगसमएण ॥१९६॥ , एक तथा अनेक समयों में बंधे समय प्रबद्धों के शेष कितने कर्मप्रदेश, कितने स्थिति और अनुभाग विशेषों में पाये जाते हैं ? एक तथा अनेक भवों में बंधे हुए कितने कर्मप्रदेश कितने स्थिति और अनुभाग विशेषों में पाये जाते हैं ? एक समय रूप एक स्थिति विशेष में वर्तमान कितने कर्मप्रदेश एक अनेक समय प्रबध्द के शेष पाये जाते हैं ? एक्कम्हि द्विदिविसेसे भव-सेसगसमयपबद्ध साणि । णियमा अणुभागेसु य भवंति सेसा अर्णतेसु ॥२०॥ एक स्थिति विशेष में नियम से एक अनेक भवबध्दों के समय प्रबध्द शेष, एक अनेक समयों में बांधे हुए कर्मों के समयप्रबध्द शेष असंख्यात होते हैं, जो नियम से अनंत अनुभागों में वर्तमान होते हैं ।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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