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________________ ( २१५ ) विशेष-एक समय में बद्ध कर्मपुंज को एक समय प्रबद्ध कहते हैं । अनेक भवों में बांधे गए कर्मपुंज को भवबद्ध कहते हैं, "एक्कम्हि भवग्गणे जेत्तिो कम्मपोग्गलो संचिदो तस्स भवबद्धसण्णा" ( २११९) गाथा में "अच्छुत्ता" पद पाया है, उसका अर्थ "प्रसंक्ष ब्ध" तथा उदय स्थिति को अप्राप्त "अस्पृष्ट" भी किया गया है। इस मूल गाथा के अर्थ का व्याख्यान करने वाली चार भाष्य गाथाएं हैं। छण्हं आलियाणं अच्छुत्ता णियमला समयपबद्धा। सब्जेस द्विदिविषयममोगमाहामि ॥१६५॥ अन्तरकरण करने से उपरिम अवस्था में वर्तमान क्षपक के छह आवलियों के भीतर बंधे हुए समय प्रबद्ध नियम से अस्पष्ट हैं । ( कारण अन्तरकरण के पश्चात् छह प्रावली के भीतर उदीरणा नहीं होती है )। वे अछूते समय-प्रबद्ध चारों संज्वलन संबंधी स्थिति-विशेषों और सभी अनुभागों में अवस्थित रहते हैं। विशेष—जिस पाए अर्थात् स्थल पर अन्तर किया जाता है, उस पाए पर बंधा समय-प्रबद्ध छह प्रावलियों के बीतने पर उदीरणा को प्राप्त होता है। अतः अन्त र करण समाप्त होने के अनंतर समय से लेकर छह आवलियों के बीतने पर उमसे परे सर्वत्र छह प्रावलियों के समय प्रबद्ध उदय में अछूते हैं । भवबद्ध सभी समयप्रबद्ध नियम से उदय में संक्षुब्ध होते हैं, "भबबद्धा पुण णियमा सब्वे उदये संछुद्धा भवंति" (२१२१)। जा चावि बज्झमाण्णी श्रावलिया होदि पढम किट्टीए। पुव्वावलिया णियमा अणतचदुसु किट्टीसु ॥ १६६ ॥ जो बध्यमान प्रावली है, उसके कर्मप्रदेश क्रोध ,संज्वलन की प्रथम कृष्टि में पाये जाते हैं । इस पूर्व पावली के अनंतर जो
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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