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________________ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज ( २१८ ) दिदि-उत्तरसेढीय भवसेस-समयपवद्धसेसाणि । एगुत्तरमेगादि उत्तरसेढी असंखेज्जा ॥२०१॥ - एक को ग्रादि को लेकर एक एक बढ़ाते हुए जो स्थिति बृद्धि होती है, उसे 'स्थिति उत्तरश्रेणो' कहते हैं । इस प्रकार को स्थिति उत्तरश्रेणी में असंख्यात भवबध्द शेष तथा समयप्रबध्द शेष पाए जाते हैं। एक्कम्मि टिदिक्सेिसे सेसाणि ण जस्थ होंति सामण्णा । आवलिगा संखेज्जदिभागो तहिं तारिसो समयो ॥२०२॥ - जिस एक स्थिति विशेष में समयप्रबद्ध शेप तथा भववशेष संभव हैं, वह सामान्य स्थिति है । जिसमें वे संभव नहीं, वह असामान्य स्थिति है । उस क्षपक के वर्ष पृथकत्वमात्र विशेष स्थिति में तादृश अर्थात् भवबध्द और समयप्रबध्द और समयप्रबध्द शेष से विरहित असामान्य स्थितियां अधिक से अधिक प्रावली के असंख्यातवें भाग प्रमाण में पाई जाती है। विशेष—जिस एक स्थिति विशेष में समयप्रबध्दशेष ( तथा भवबद्ध शेष ) पाये जाते हैं वह सामान्य स्थिति है। जिसमें वे नहीं है, वह असामान्य स्थिति है । इस प्रकार असामान्य स्थितियां एक वा दो आदि अधिक से अधिक अनुबध्द रूप से ग्रावली के असंख्यातवें भाग मात्र पाई जाती हैं। सामान्य स्थितियों के अन्तर रूप से असामान्य स्थितियां पाई जाती हैं । वे एक से लेकर प्रावली के असंख्यातवें भाग प्रमाण पर्यन्त निरन्तर रूप से पाई जाती हैं । इस प्रकार पाई जाने वाली असामान्य स्थितियों की चरम स्थिति से ऊपर जो अनंतर समयवर्ती स्थिति पाई जाती है, उसमें भी समयप्रबद्ध शेष और भवबध्द शेष पाये जाते हैं।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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