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( २१३ ) कि लेस्साए बद्धाणि केसु कम्मेसु वहमाणेण । सादेण असादेण च लिंगेण च कम्हि खेत्तम्हि ॥११॥
किस लेश्या में, किन कर्मों में, किस क्षेत्र में,( किस काल में ) वर्तमान जीव के द्वारा बांधे हुए साता और प्रसाता, किस लिंग के द्वारा बांधे हुए कर्म क्षपक के पाये जाते हैं ? इस गाथा की विभाषा दो गाथाओं में हुई।
' मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज लेस्सा साद' असादे च अभज्जा कम्म-सिप्प-लिंगे च । खेताहि च भज्जाणि दु समाविभागे अभज्जाणि ॥१२॥
सर्व लेश्याओं में, साता तथा असाता में वर्तमान जीव के पूर्वबद्ध कर्म अभाज्य हैं। असि मषि प्रादि कर्मों में, शिल्प कार्यों में, सभी पाखण्ड लिंगों में तथा सभी क्षेत्रों में बद्ध कर्म भजनीय हैं । समा अर्थात् उत्सर्पिणी अवसर्पिणी रूप काल के विभागों में पूर्व बद्ध कर्म अभाज्य हैं।
विशेष-छहों लेश्याओं में, साता असाता वेदनीय के उदय में वर्तमान जीव के द्वारा पूर्वबद्ध कर्म अभाज्य हैं । वे कृष्टिवेदक के नियम से पाये जाते हैं। सर्व कर्मों और सर्व शिल्पों में पूर्वबद्ध कर्म भाज्य हैं।
प्रश्न-वे कर्म कौन हैं ?
समाधान-"कम्मापिा जहा अंगारकम्मं राम पव्वदकम्म -मेदेमु कम्मेसु भज्जाणि"-कर्म इस प्रकार हैं; अंगारकम, वर्णकर्म, पर्वत कर्म । इनमें बांधे हुए कर्म भाज्य है । - अंगारकर्म पापप्रचुर आजीविका को कहते हैं । चित्र निर्माण, कारीगरी प्रादि वर्ण कर्म हैं | पाषाण को काटना, भूति स्तंभादि का निर्माण करना पर्वत कर्म है । हस्त नैपुण्य द्वारा संपादित कर्म शिल्प कर्म है।