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________________ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज - विशेष—कृष्टिधेदक क्षपक के उत्कृष्ट स्थिति तथा उत्कृष्ट अनु. भाग बद्ध कर्म भजनीय है अर्थात् होते भी है, नहीं भी होते हैं । "कोह-माण-माया-लोभोवजुत्तहिं बद्धाणि अभजियवाणि" क्रोध, मान, माया तथा लोभ के उपयोग पूर्वक बद्धकर्म प्रभजनीय हैं अर्थात् "एदस्स खवगस्स णियमा अत्थि"-इस क्षपक में नियम से पाये जाते हैं। पज्जत्तापज्जत्तण तथा त्थीपुण्णवंसथमिस्सेण । सम्मत्ते मिच्छत्ते केण व जोगोवजोगेण ॥१८६ ॥ - पर्याप्त और अपर्याप्त अवस्था के साथ तथा स्त्री, पुरुष, नपुंसक वेद के साथ मिश्र प्रकृति, सम्यक्त्व प्रकति तथा मिथ्यात्व प्रकृति के साथ और किस योग और उपयोग के साथ पूर्वबद्ध कर्म क्षपक के पाए जाते हैं ? विशेष--इस गाथा के अर्थ को विभाषा आगामी चार गाथात्रों द्वारा की गई है, "एत्थ चत्तारि भास गाहायो" (२११०) पजत्तापजत्ते मिच्छत्त-गणवंसये च सम्मत्ते। कम्मावि अभज्जाणि दुथी-पुरिसे मिस्सगे भज्जा ॥१७॥ - पर्याप्त, अपर्याप्त में, मिथ्यात्व, नपुंसक वेद तथा सम्यक्त्व अवस्था में वांधे गए कर्म अभजनीय हैं तथा स्त्रीवेद, पुरुषवेद और सम्यग्मिथ्यात्व अवस्था में बांधे कर्म भाज्य है। ओरालिये सरीरे ओरालिय-मिस्सये च जोगे दु । चदुविधमण-बचिजोगे च अभज्जा सेसगे भन्जा ॥१८॥ - औदारिक काययोग, औदारिकमिश्र काययोग, चतुविध मनोयोग, चतुवित्र वचनयोग में वांधे कर्म अमजनीय हैं, शेष योगों में बांधे हुए कर्म भजनीय हैं । विशेष-क्षपक के वैक्रियिक काययोग तथा कार्माण काययोग प्राहारक, पाहा कमिश्र काययोग तथा कार्माण काययोग के साथ यांधे गए कर्म भजनीय है --"सेसजोगेसु बद्धाणि भज्जाणि" (२१११)।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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