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________________ ( २१० ) विशेष – “एदस्स दुगदिसमज्जिदं कम्म णियमसा प्रत्थि"-इस कृष्टिवेदक क्षपक के दो गति में उपार्जित कर्म नियम से पाया जाता है। प्रश्न--वे दो गति कौन हैं, जहां उपाजित कर्म नियम से पाया जाता है? मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज - समाधान-~-वे गतियां तिर्यंच गति तथा मनुष्य गति है। "देवगदि समज्जिदं च णिरयगदि समज्जिदं च भजियवं"-देवगदि समुपार्जित और नरक गति समुपार्जित कर्म भजनीय हैं । एकेन्द्रियादि पंच स्थावरकायों में समुपार्जित कर्म भजनीय है। शंका-भजनीय का क्या अभिप्राय है ? , समाधान-"सिया अस्थि, सिया णत्यि"-होते भी हैं अथवा नहीं भी होते हैं। __ "तसकाइयं समज्जिदं णियमा अत्थि" (२१०६) सकाय में समुपाजित कम नियम से पाया जाता है । एइंदियभवम्गहणेहिं अखेज्जेहि णियमता बद्धं । एगादेगुत्तरिय संखेज्जेहि य तसभवेहिं ॥१४॥ क्षपक के असंख्यात एकेन्द्रिय-भव-ग्रहणों के द्वारा बद्धकर्म नियम से पाया जाता है और एकादि संख्यात त्रस भवों के द्वारा संचित कर्म पाया जाता है। उक्कस्सय अणुभागे टिदिउक्कस्सगाणि पुवबद्धाणि । भजियवाणि अभज्जाणि होति णियमा कसाएसु ॥१८॥ उत्कृष्ट अनुभाग युक्त तथा उत्कृष्ट स्थितियुक्त पूर्वबद्ध कर्म भजनीय है । कषायों में पूर्वबद्धकर्म नियम से प्रभजनीय हैं।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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