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(२०६ ) पश्चिम कृष्टि ( संज्वलन लोभ की सूक्ष्मसांपरायिक अन्तिम द्वादशम कृष्टि ) का वेदक काल नियम से अल्प है। पश्चात् अनुपूर्वी से शेष एकादश कृष्टियों का वेदक काल क्रमशः संख्यातवें भाग से अधिक है।
विशेष—पश्चिम अर्थात् द्वादशम कृष्टि को अंतर्मुहर्त पर्यन्त वेदन माहैि । उमाशाशक मुशिमालमसे स्लोकहहाजएकादशम कृष्टि का वेदक काल विशेषाधिक है। दशमी कृष्टि का वेदक काल विशेषाधिक है। नवमी आदि से प्रथम कृष्टि पर्यन्त कृष्टियों का वेदक काल सर्वत्र विशेषाधिक विशेषाधिक है।
शंका- "एत्थ सम्वत्य विसेसो किं पमाणो ?"-यहां सर्वत्र विशेष का क्या प्रमाण है ?
समाधान-"विसेसो संखेज्जदिभागो" ( २१०२ ) विशेष संख्यातवें भाग है अर्थात् संख्यात प्रावली है। कदिसु गदीसु भवेसु य दिदि-अणुभागेसु वा कसाएसु । कम्माणि पुब्बद्धाणि कदीसु किट्टीसु च द्विदीसु॥ १२ ॥ - पूर्वबद्ध कर्म जितनी गतियों में, भवों में, स्थितियों में, अनुभागों में; कषायों में, कितनी कष्टियों में तथा उनकी कितनी स्थितियों में पाये जाते हैं ?
विशेष--"गति" शब्द गति मार्गणा का ज्ञापक है। "भव" पद से इंद्रिय और काय मार्गणा सूचित की गई हैं। "कपाय" के द्वारा कषाय मार्गणा का ग्रहण हुअा है।
पूर्वोक्त मूल गाथा की तीन भाष्य गाथा हैं। दोसु गदीसु अभज्जाणि दोसु भज्जाणि पुव्ववद्धाणि । एइंदियकाएसु च पंचसु भज्जा ण च तप्तेसु ॥१८३॥ __ पूर्वबद्ध कर्म दो गतियों में प्रभजनीय हैं तथा दो गतियों में भजनीय हैं । एकेन्द्रिय जाति और पंच स्थावरकायों में भजनीय है । शेप द्वीन्द्रियादि चार जातियों तथा प्रसों में भजनीय नहीं हैं।