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________________ जामहाराज ( २०५ ) जो वर्गणा अनुभाग की अपेक्षा होन है, वह प्रदेशाग्र को मार्गदर्शक : अपेक्षा अधिकारी वर्गणाएं अनंतवे माग से अधिक तथा हीन जानना चाहिए । “विशेष-जिन वर्गणाओं में अनुभाग अधिक होगा, उनमें प्रदेशाग्र कम होंगे । जिनमें प्रदेशाग्र अधिक रहेंगे, उनमें अनुभाग कम रहेगा । जघन्य वर्गणा प्रदेशाग्र बहुत हैं। दूसरी वर्गणा में प्रदेशाग्र बिशेषहीन अर्थात् अनंतवें भागसे होन होते हैं। इस प्रकार अनंतर अनंतर क्रमसे सर्वत्र विशेष हीन प्रदेशाग्न जानना चाहिए ! "जहष्णियाए बग्गण्णाए पदेसगं बहुमं । बिदियाए वग्गणाए पदेसग्गं विसेसहीण मणतभागेण । एवमणेतराणंतरेण विसेसहीणं सब्बत्य" । ( २०८८ ) कोधादिवग्गणादो सुद्धं कोधस्स उत्तरपदं तु । सेतो अणंतभागो णियमा तिस्से पदेसग्गे ॥१७॥ क्रोथ कषाय का उत्तर पद क्रोध को आदि घर्गणा में से घटाना चाहिये । इससे जो शेष रुष अनंतवां भाग रहता है, वह क्रोध की आदि वर्गणा अर्थात् जघन्य वर्गणा के प्रदेशाग्र में अधिक है। - विशेष-क्रोध की जघन्य वर्गणा से उसकी उत्कृष्ट वर्गणा में प्रदेशाग्र विशेष हीन अर्थात् अनंतवें भाग से होन हैं। १ एलो कमो य कोधे मारणे णियमा च होदि मावाए। लोभम्हि च किट्टीए पत्तेगं होदि बोद्धब्बो ॥ १७४ ॥ । क्रोध के विषय में कहा गया यह क्रम नियम से मान, माया, लोभ की कृष्टि में प्रत्येक का जानना चाहिये । १ कोधस्स जहणियादो वग्गणादो उक्कस्सियाए वग्गणाए पदैसरगं विसेसहीणमणंत-भागेण ( २०८९)
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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