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________________ ( २०४ ) . प्रदेशाग्र विशेषाधिक हैं। "विसेसो पलिदोवमस्स असंखेज दिभागपडिभागो"--विशेष का प्रमाण पल्योपम के प्रसंख्यातवें भाग का प्रतिभाग है । ( २०५५ )। ___ मान की तृतीय संग्रह कृष्टिसे क्रोध को द्वितीय संग्रह कृष्टिमें प्रदेशाग्र विशेषाधिक हैं। तृतीय संग्रह कृष्टि में प्रदेशाग्र विशेषाधिक हैं । माया की प्रथम संग्रह कृष्टि में प्रदेशाग्र विशेषाधिक है। द्वितीय संग्रहकष्टि में प्रदेशाग्र विशेषाधिक हैं। तृतीय संग्रह कृष्टि में प्रदेशाग्न विशेषाधिक हैं। लोभ को प्रथम संग्रह कृष्टिमें : देशाग्र विशेषाधिक हैं। द्वितीय संग्रह कृष्टिमें प्रदेशाग्र विशेषाधिक है। तृतीय संग्रह कष्टिमें प्रदेशाग्र विशेषाधिक हैं। क्रोध की प्रथम संग्रह कृष्टि में प्रदेशाग्न संख्यातगुणे हैं । "कोहस्य पढमाए संगहकिट्टीए पदेसग्गं संखेज्जगुणं"। यहां संख्यात मार्गदर्शक :- अयामा लोग्रफुसारहे लेस्सगुणमैत्तमिदि वुत्तं होदि" (२०८६)। विदियादो पुण पढमा संखेन्ज गुणा दु वग्गणग्गेण । विदियादो पुण तदिया कमेण सेसा विसेसहिया ॥२७॥ क्रोध की द्वितीय संग्रह कृष्टि से प्रथम संग्रह कृष्टि वर्गणाओं के समूह की अपेक्षा संख्यातगुणी है। द्वितीय संग्रह कृष्टि से तुतीय विशेषाधिक है । इस प्रकार शेष संग्रह कृष्टियां विशेषाधिक जामना चाहिए। विशेष-अनंत परमाणनों के समुदायात्मक एक अन्तर कृष्टि को वर्गणा कहते हैं । बर्गणाओं का समुदाय वर्गणाग्र है । "एत्थ वग्गणा त्ति वुत्त एक्केका अंतरकिट्टी चेघ अणंतसरिसवाणियपरमाणु समूहारद्धा एगेगा वग्गणा त्ति घेतव्या तासिं समूहो 'वग्गणग्गमिदि भण्णदे" । ( २०८६) जा होणा अणुभागेण 5 हिया सा वग्गणा पदेसग्गे । भागेणाणंतिमेण दु अधिगा हीणा च बोधव्वा ॥१७२॥
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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