SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२०३ ) है, उनमें दूसरी अन्य कृष्टियां नहीं रहती हैं । "एकेक्का किट्टी अणुभागेसु अणंतेसु । जेसु पुण एवका ण तेसु विदिया" । सव्वाश्रो किट्टीओ बिदियद्विदीए दु होति सविस्से । जं किहि वेदयदे तिस्से अंसो च पढमाए ॥ १६८ ॥ सभी संग्रह कृष्टियां और उनकी अवयव करिटयां समस्त द्वितीय स्थिति में होती हैं, किंतु वह जिस कृष्टि का वेदन करता है, उसका अंश प्रथम स्थिति में होता है। विशेष–वेद्यमान संग्रहकष्टिका अंश उदय को छोड़कर शोष सर्व स्थितियों में पाया जाता है, किन्तु उदय स्थितिमें वेद्यमान कष्टि के असंख्यात बहुभाग ही पाए जाते हैं । किट्टी च पदेसग्गेणणुभागग्गेण का च काले । अधिका समाच हीणा गुणेण किंवा विसेसेण ॥ १६६ ॥ कें:- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज ___ कौन कृष्टि प्रदेशाग्र, अनुभागाग्न तथा काल की अपेक्षा किम कष्टिसे अधिक है, समान है अथवा हीन है? एक कृष्टि से दूसरी में गुणों की अपेक्षा क्या विशेषता है ? बिदियादो पुण पढमा संखेज्जगुणा भवे पदेसम्गे। बिदियादो पुरण तदिया कमेण सेसा विसेसहिया॥१७॥ क्रोध की प्रथम संग्रष्टि उसको द्वितीय गंग्रह कृष्टि से प्रदेशाग्र की अपेक्षा संख्यातगुणी है। द्वितीय सग्रह कृष्टि से तीसरी विशेषाधिक है। - विशेष-क्रोध की द्वितीय संग्रह कृष्टि में प्रदेशाग्र स्तोक हैं । प्रथम संग्रह कृष्टि में प्रदेशाग्न संख्यातगुणे अर्थात् तेरह गुने हैं । “पटमाए संगहकिट्टीए पदेसम्गं संखेज्जगुणं तेरसगुणमेत्त" २०८३) । मान की प्रथम संग्रह कष्टि में प्रदेशाग्र स्तोक हैं। द्वितीय संग्रह कृष्टि में प्रदेशाग्र विशेषाधिक हैं। तृतीय संग्रह कृष्टि में
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy