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________________ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज ( २०२ ) कितने अनुभागों तथा कितनी स्थितियों में कौन कृष्टि है ? यदि सभी स्थितियों में सभी कृष्टियां संभव हैं, तो क्या उनको सभी अवयव स्थितियों में भी मभी कृष्टियां संभव हैं अयवा प्रत्येक स्थिति पर एक एक कृष्टि संभव है ? किट्री च द्विदीविसेसेसु असंखेज्जेसु णियमासा होदि। पणियमा अणुभागेसु च होदिहु किट्टी असंतेसु ॥ १६७॥ सभी कृष्टियां सर्व असंख्यात-स्थितिविरोषों पर नियमसे होती हैं तथा प्रत्येक कृष्टि नियमसे अनंत अनुभागों में होती हैं । विशेष-क्रोध को प्रथम संग्रहकृष्ठि को वेदन करने वाले जीव के उस अवस्था में क्रोध संज्वलन की प्रथम स्थिति और द्वितीय स्थिति संज्ञावाली दो स्थितियां होती हैं। उनमें द्वितीय स्थिति संबंधी एक एक समय रुप जितनी अवयव स्थितियां हैं, उन सब में बेदन की जानेवाली क्रोध-प्रथम संग्रहकृष्टि की जितनी अवयवष्टियां हैं, वे सब पाई जाती हैं; किन्तु प्रथम स्थिति संबंधी जितनी अवान्तर स्थितियां हैं, उनमें केवल एक उदयस्थिति को छोड़कर शेष सर्व अवान्तरस्थितियों में क्रोध कषाय संबंधी प्रथम संग्रह कष्टि को सर्व अवयवकृष्टियां पाई जाती हैं। ___उदय स्थिति में वेद्यमान संग्रहकृष्टिकी जितनी अवयवष्टियां हैं, उनका असंख्यात बहुभाग पाया जाता है। शेष अवेद्यमान ग्यारह संग्रहकृष्टियों को एक एक अवयव कृष्टि सर्व द्वितीय स्थिति संबधी अवान्तरस्थितियों में पाई जाती हैं। प्रथम स्थिति संबंधी प्रवान्तर स्थितियों में नहीं पाई जाती-"सेसाणमवेदिज्जमाणिगाणं संगहकिट्टोणमेक्केक्का किट्टी सध्यासु विदियद्विदीसु, पडमविदीसु जस्थि" ( २०७९ )। एक एक संग्रह कृष्टि यथवा अवयवकृष्टियां अनन्त अनुभागों में रहती हैं। जिन अनंत अनुभागों में एक विवक्षित कृष्टि वर्तमान
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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