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________________ .. ( २७ । नाला खामा . बुलडाणा जायदि जीवरसेवं भावो संसार-चक्कबालम्मि । इदि जिणवरेहि मणिदो प्रणादि-णिधणो सणिणो वा ॥१३॥ " संसारी जीव के अनादि कालीन बंधन की उपाधि के पश से "स्निग्घः परिणामों भवति"--स्निग्ध रूप परिणाम होता है। उन स्निग्ध परिणामों से पुद्गल परिणाम रूप कर्म आता है। उससे नरकादि गसियों में गमन होता है। नरकादिगतियों में जाने पर शरीर प्राप्त होता है। शरीर में इंद्रियां होती हैं। इंद्रियों से विपयों का ग्रहण होता है। विषय महग्स द्वारा राग तथा द्वेषभाव पैदा होते हैं। रामप से पुनः स्निग्ध परिणाम होता है--"रागद्वेषाभ्यां पुनः स्निग्धारसामः" उनसे कर्म यघता है। इस प्रकार परस्पर में कार्य कारण स्वरूप जोयों तथा पुद्गली के परिणाम रूप कर्म जाल संमार चक में जीव के अनादि अनंत अथवा अनादि सान्त रूप से चक्र के समान परिवनेन को प्राप्त होते हैं। इस प्रकार जिनेन्द्र भगवान का कथन है। अमूतं श्रारमा के बंध का कारण-प्रवचनसार टीका में यह प्रश्नावराया गया जमावास्याहमजा हिरावरूतत्वाभावात् संधी भवति"-आत्मा स्वभाव से अमूर्त है। उसमें स्निग्धपना, रूतपना नहीं पाया जादा है। इसके वैध कैसे होता है ? / शंका-इस शंका को प्रवचनसार में इस प्रकार रखा गया हैपत्तो स्वादिगुणो बज्झदि फासेहि भएणमएणेहि । तविवरीदो अप्पा चंधदि किध पोग्गलं कम्म ।।१७३॥ रूपादि गुण युक्त होने से मूर्तिमान पुद्गल का अन्य पुद्गल के साथ बंध होना उपयुक्त है, किन्तु पात्मा तो रूपादिगुण रहित है, यह किस प्रकार पौद्गलिक कर्मों का बंध करता है? समाधान-इस प्रश्न के समाधानार्थ कुन्दकुन्द स्वामी कहते हैंरूवादिएहि रहिदो पेच्छादि जाणादि रूत्रमादीणि । दवाणि गुणे य अधा तध बंघो तेण जाणिहि ॥१७॥प्र.सा.॥ मात्मा स्वयं रूप, रस, गंध तथा वर्ण रहित है, फिर भी वह रूप रस आदि युक्त द्रश्य तथा गुणों को देखता है तथा जानता है। इस प्रकार रूपावि रहित भारमा रूपी कर्मपुद्गलों से यंध को प्राप्त होता है।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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