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________________ ( १७६ ) अन्यतर, दारिक मांगोपांग, वज्रवृषभसंहनन, वर्ण, रस, गंध, स्पर्श, प्रगुरुलघु आदि चार, दो में से अन्यतर विहायोगति, त्रस चतुष्क, स्थिर- अयिर, शुभ- मशुभ, सुभग दुभंग, सुस्वर- दुस्वर इनमें से एकतर, आदेय, यशःकीर्ति, निर्माण, उच्चगोत्र तथा पंच अंतरायों का यह वेदक है। यहां अन्य प्रकृतियों का उदय असंभव है । इन प्रकृतियों में से साता वेदनीय और मनुष्यायु को छोड़कर शेष प्रकृतियों की वह उदीरणा करता है । प्रश्न - यहां आयु तथा वेदनीय की उदीरणा क्यों संभव नहीं है ? समाधान - वेदनीय तथा प्राय की उदीरणा प्रमत्तगुणस्थान से आगे असंभव है । मार्गदर्शक- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज प्रश्न -- " के अंसे भीयदे पुवं बंधेण उदएण बा" कौन कौन कर्माश बंध अथवा उदय की अपेक्षा पहले निर्जीर्ण होते हैं ? - समाधान – स्त्यानगृद्धि त्रिक, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, द्वादश कषाय, रति, शोक, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, सभी श्रायु, परिवर्तमान नाम कर्म की सभी शुभ प्रकृतियां, मनुष्यगति, श्रदारिक शरीर, औदारिक श्रगोपांग, वज्रवृषभ संहनन, मनुष्यगति प्रायोग्यानुपूर्वी, प्रातप, उद्योत ये शुभ प्रकृतियां तथा नीचगोत्र ये कर्म कषायों की क्षपणा के प्रारंभ करने वाले के बंध से व्युच्छिन्न होते हैं । उदय से व्युच्छिन्न होने वाली प्रकृतियां ये है - स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व द्वादश कषाय, मनुष्यायु को छोड़कर शेष श्रायु, नरकगति, तियंचगति, देवगति के प्रायोग्य नाम कसं की प्रकृतियां, आहारकद्विक, वज्रवृषभनाराच संहनन को छोड़ शेष संहनन, मनुष्यगति प्रायोग्यानुपूर्वी, अपर्याप्तनाम, प्रशुभत्रिक, कदाचित् तीर्थंकरनाम, नीचगोत्र ये प्रकृतियां कषायों के क्षपक के उदय व्यच्छित होती हैं ।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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