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समाधान-नियम से हीयमान कषाय होती है । "णियमा हायमाणो' उपयोग के विषय में यह वर्णन किया गया है। "प्रात्मनोऽर्थग्रहणपरिणामः उपयोग:"-आत्मा के अर्थरहण का परिणाम उपयोग है। उसका भेद साकार उपयोग मतिज्ञानादि पाठ प्रकार का है तथा अनाकार उपयोग चक्षदर्शनादि के भेद से चार प्रकार का है।
एक उपदेश है, कि श्रुतज्ञानोपयोगी क्षपक श्रेणी पर चढ़ता है। दूसागदर्शकदेश झैचाकिमीशुशिनिसागप्रधाहमतिज्ञानी चक्षुदर्शन अथवा प्रचक्षुदर्शन से उपयुक्त होकर क्षपक श्रेणी पर चढ़ता है। "एक्को उबएसो णियमा सुदोवजुत्तो होदूण खबगसेटिं घडदि ति। एको उवदेसो सुदेण वा मदीए वा, चक्खुदंसणेण वा, अचक्खुदंसणेण वा"
क्षपक के नियम से शुक्ललेश्या होती है । "णियमा वडढमाण लेस्सा"-नियम से वर्धमानलेश्या होती है ।
प्रश्न- उसके कौन सा वेद होता है ?
समाधान--"अण्णदरो वेदो"-अन्यतर अर्थात् तीन वेदों में कोई एक वेद होता है। यह भाववेद की अपेक्षा कहा गया है।
शंका--उसके द्रव्यवेद कौन सा है ?
समाधान- "दव्वदो पुरिसवेदो चेव खवगढिमारोहदि ति वत्तव्यं । तत्थ पयांतरासंभवादो” (पृ० १९४४ ) द्रव्य से पुरुषवेद युक्त क्षपक श्रेणी पर ग्रारोहण करता है। इस विषय में प्रकारान्तर नहीं है।
प्रश्न- "काणि वा पुध्वबद्धाणि ?"-कौन कौन कर्म पूर्वबद्ध हैं ?
समाधान-क्षपणा प्रारंभ करने वाले के प्रकृति सत्कर्म मागंणा में दर्शन मोह, अनंतानुबंधी चतुष्क तथा तीन आयु को छोड़कर शेष कर्मों का सत्कर्म कहना चाहिये। पाहारकशरीर