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________________ यदि प्रत्याख्यानावरणीय का उदय होते हुए भी शेष संज्वलनादि चारित्र मोह की प्रकृति को बदनही.सनिझियमा जी म्हारा संयम लब्धि को क्षायिकपना प्राप्त हो जायगा-"जइ पंचक्खाणावरणीय वेदेतो सेसाणि चरित्तमोहणीयाणि ण वेदेज्ज तदा संजमासंजम लद्धी खइया होज्ज ।" संज्वलनादि का देशधाति रूपसे उदय परिणाम पाया जाता है, इससे उसे क्षायोपशमिक कहा है। (१९६४) इस संयमासंजम के विशेष परिज्ञानार्थ सत् प्ररुपणा, द्रव्यप्रमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर, भागाभाग और अल्पबहुत्व ये आठ अनुयोग द्वार हैं, “संजदासंजदाणमट्ठ अणियोगद्दाराणि" ___हिंसादि का त्याग करके पंच महाव्रत, पंच समिति तथा तीन गुप्ति को धारण करने रूप जो विशुद्ध परिणाम होते हैं, वह संयम लब्धि है । गोम्मटसार जीवकांड में कहा है: संजलण-गोकसायाणुदयादो संजमो हवे जम्हा । मलजणणपमादो वि य तम्हा हु पमत्तविरदो सो ॥३२॥ संज्वलन तथा नव नोकधायों के सर्वघाति स्पर्धकों का उदयाभाव रूप क्षय, तथा उनका सदवस्था रूप उपशम और देशघाति स्पर्धकों के उदय होने से संयम के साथ मलिनता का कारण प्रमाद भी होता हैं, इससे प्रमत्तविरत कहते हैं। १ अलब्धपूर्व संयमासंघम लब्धि अथवा संयम लब्धि के प्राप्त होने पर उसके प्रथम समय से लेकर अंतर्मुहत पर्यन्त प्रति समय अनंतगुणित क्रम से परिणामों में विशुद्धता को वृद्धि को 'वड्ढावड्ढी' कहते हैं। १ 'वड्ढाबड्डो' एव भणिदे तासु चेव संजमासंजम-संजमलद्धीसु अलद्धपुब्बासु पडिलद्धासु तल्लाभपढमसमयप्पहुडि अंतोमुहत्तकालभंतरे पडिसमयमणंतगुणाए सेढीए परिणामवडढ़ी गहेयरो। उवरुवरिपरिणामवढीए वड्वावडिववएसो बलंवपादो । (१७४५)
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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