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( १५३ ) तत्थ संभवे विरोहाभावादो” उनका उदय सर्वघातीपने से रहित होने से देशोपशम बहां भी संभव है, कारण इसमें कोई विरोध नहीं है। प्रत्याख्यानावरण का उदय तो सबंधाती ही है, ऐसा कहना ठीक नहीं है । देशसंयम के विषय में उसका व्यापार नहीं पाया जाता है" पच्चक्खाणावरणीयोदयो सब्वघादी चेवेत्ति चे ण, देससंजमविसए तस्स वावाराभावादो ( १७७५)
नेमिचंद्राचार्य ने कहा है:पच्चक्खाणुदयादो संजमभावो ण होदि गरि तु ।। थोववदो होदि तदो देसवदो होदि पंचमग्रो ॥ ३० ।। गो. जो.
प्रत्याख्यानावरण कषाय प्रत्याख्यान अर्थात् सकलसंयम को रोकताहक उस ऋषार्य श्री विहानपी सामाभाव नहीं होता है । १ प्रत्याख्यानावरण के सर्वघाती स्पर्धकों का उदयाभाव लक्षण क्षय तथा उनका सदवस्था रूप उपशम होने पर तथा देशघाती स्पर्धकों का उदय होने से अल्प व्रत रूप देशव्रत होते हैं । इसको धारण करने वाला पंचमगुणस्थानयुक्त कहा गया है।
यतिवृषभ प्राचार्य कहते हैं "पचक्खाणावरणीया वि संजमासंजमस्स ण किंचि आवरति—" प्रत्याख्यानावरणीय कषाय संयमासंयम को कुछ भी क्षति नहीं पहुँचाती है । "सेसा चदुकसाया गवणोकसायवेदणीयाणि च उदिण्णापि देशघादि करेदि संजमासंजम"--शेष चार संज्वलन कषाय, नव नोकपाय वेदनीय के उदयवश संयमासंयम को देशघाती करती हैं । ' देशधादि करेंति, खग्रोवसामियं करेंति त्ति बुत्तं होदि-" देशघाती करती हैं इसका भाव यह है कि उसे क्षायोपशमिक करती हैं।
१ प्रत्याख्यानावरण कषायाणां सर्वघातिस्पर्धकोदयाभावलक्षणे क्षये तेषामेव सदवस्थालक्षणे उपशमे च देशधातिस्पर्धकोदयादुत्पम्न. त्वाशसंयमः क्षायोपशमिक इति प्रतिपादितः ।।
( संस्कृत टीका पृष्ठ ५९)