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________________ ( १३६ ) कम्मंसा ति भणिदे मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामिच्छताणं गहणं कायव्वं ।" उन तीनों की कोई भी स्थिति अनुपशान्त नहीं है। ... तीनों प्रकृतियों के सर्वस्थिति विशेष एक ही अनुभाग में रहते हैं। मिच्छत्तपच्चो खलु बंधो उवसामगस्स बोद्धव्यो। 'उवसंते आसाणे तेण परं होइ भजियव्यो ॥१०१॥ : दर्शन मोह का उपशमन करने वाले उपशामक के मिथ्यात्व निमित्तक कर्मबंध जानना चाहिए । दर्शन मोह का उपशम हो जाने पर उपशमलवर्षयी केशिवालया स्पधक्काचाह होना है। १ उपशान्त दशा के अवसान हो जाने पर मिथ्यात्व निमित्तक बंध भजनीय है । । विशेष---दर्शन मोह का उपशमन कार्य पूर्ण न होने पर मिथ्यात्व गुणस्थान रहता है । अतः उसके मिथ्यात्व निमित्तक बंध होता है । उपशम सम्यक्त्वी का. काल. पूर्ण हो जाने पर यदि वह मिथ्यात्व अवस्था को प्राप्त होता है, तो मिथ्यात्व निमित्तक बंध होगा । कदाचित् वह सासादन गुणस्थान को प्राप्त करता है, तो उसके मिथ्यात्व निमित्तक बंध का अभाव होगा । इस कारण उपशान्त दशा के अवसान होने पर मिथ्यात्व निमित्तक बंध भजनीय कहा गया है। . सम्मामिच्छाइटी दंसणमोहस्सप्रबंधगो होइ। . वेदयसम्माइट्टी खीणो वि अबंधगो होइ॥१०२॥ सम्यग्मिथ्याष्टि जीव दर्शन मोह का प्रबंधक होता है। वेदक (१) मिन्छतां पन्नो कारणं जस्स सो मिच्छत्तपच्चयो खलु परिप्फुडं बंधो दसणमोहोवसामगस्स जाव पढमट्ठिदिचरमसमो त्ति ताव बोद्धब्बो (१७३२) . ...
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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