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( २० ) महर्षियों ने पूर्वयद्ध कमी को पलबान कहा है । यह सूक्ति महत्वपूर्ण है--
चैधा वदन्ति कफ-पित्त-मरुद्विकारान् । ज्योति विदो ग्रहगति परिवर्तयन्ति ॥ भृताभि-भूतमिति भूतविदो वदन्ति । प्राचीनकर्म बलवन्मुनयो वदंति ॥
मार्गदकिमानचा मध किया काण्डों को कर्म संशा प्रदान की गई है। वैयाकरण पाणिनि ने कर्ता के लिए अत्यन्त इष्ट को कर्म कहा है। महाभारत में उसे कर्म कहा है, जिससे जीव घंधन को प्राप्त करता है-“कर्मण। यध्यते जन्तुः, विदाया तु प्रमुच्यत" ( २४०-५) पतंजलि के योगसूत्र में "क्लेश का मूल कारण फर्म (कर्माशय) कहा गया है । कर्माशय-फम की वासना इस जन्म में तथा जन्मान्तर में अनुभवगोचर हुश्रा करती है। योगी के अशुक्ल पवं अकृष्ण कर्म होते हैं। संसारीजीवी के शुक्ला, कृष्ण तथा शुक्ल-कृष्ण कर्म कहे गए हैं। -"क्लेशमूलः कर्माशयः पटापजन्य वेदनीयः । कोशुक्लकृष्ण योगिनास्त्रविमितरेषाम्"--- ( यो. द. कैवल्यपाद )।
क्रियात्मक क्षणिक प्रवृत्ति से पत्पन्न घर्म तथा अधर्म पदवाच्य मात्मसंस्कार कर्म के फलोपमोग पर्यन्त पाया जाता है।
अशोक के शिलालेख नं. ८ में लिखा है, "इस प्रकार देवताओं का प्यारा प्रियदर्शी अपने भले कर्मों से उत्पन्न हुए सुख को भोगता है।' 'मिलिन्द प्रश्न' चौद्ध रचना में मिलिन्द नरेश को भितु नागसेन ने कर्म का स्वरूप इस प्रकार समझाया है, जीव कर्मों के अनुसार नाना योनियों में जन्म धारण करते हैं । कर्म से ही जीव ऊँचे-नीचे हुए हैं।-"कम्मपरिसरमा । कम्म मते बिभजात यदिदं हीनप्पणांततायीति"* जैन धाडमय में कर्म का सुव्यवस्थित, शृङ्गलाबद्ध तथा वैज्ञानिक वर्णन है। फर्म विषयक विपुल साहित्य उपलब्ध होता है। क्रम के बंध पर प्रकाश डालने
.MO Maharaja, it is because of differences of action that men are not like, for some live long and some are short-lived; some are bale and some weak; some comely and some ugly; some powerful and some without power; some rich, some poor, some born of noble, come meanly Btack, some wise and some foolish"-The Heart of Buddhism P. 85.