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मिथ्यात्व' इस गाथा के अंतिम प्रथं अंश से सम्यक्त्र मार्गणा सूचित्त की गई है। विरदीए अविरदीए विरदाविरदे तहा अणागारे। सागारे जोगम्हि य लेस्साए चेव बोधवा ॥३॥
“ अविरति में, विरताविरत में, विरत में, अनाकार उपयोग में, साकार उपयोग में, योग में तथा लेश्या में पूर्वोक्त स्थान जानना चाहिये।
- विशेषार्थ--१ अविरति, बिरताविरत, विरति शब्दों से संयममार्गणा को सूचना दी गई है। अनाकार पद द्वारा दर्शन मार्गणा को, साकार पदसे ज्ञानमार्गणा की, योगपद से योग मार्गणा को और लेश्या पद सेमागोश्याममागंशाचायी प्रीसमाध्यिोगाईजो हारनेछ' पद से शेष पांच मार्गणाओं का संग्रह किया गया है ।
कं ठाणं वेदंतो कस्स व द्वाणस्स बंधगो होइ। के ठाण-मवेदंतो अवंधगा कस्स ठाणस्स ॥४॥
- कौन जीव किस स्थान का वेदन करता हुआ किस स्थान का बंधक होता है तथा कौन जीव किस स्थान का अवेदन करता हुना किस स्थान का प्रबंधक होता है ?
. १ विरदीय अविरदीय इच्चेदेण पढ़मावयवेण मंजममग्गणा णिरवसेसा गहेयब्वा । 'तहा अणागारेत्ति' भणिदे ईसणमग्गणा घेत्तब्वा । सागारेत्ति भणिद णाणमगणा गहेयन्वा । 'जोगम्हि य' एवं भणिदे जोगमग्गणा घेत्तव्वा । लेस्साए ति वयणेण लेस्सामग्गशाए गणं कायत्वं । एत्थतण चेव सद्देणावुत्त समुच्चय?ण वृत्त. सेस-सब्ब-मग्गणाणं संगहो कायब्बो (१६८२)