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मातवी गाथा-'उधजोगवगणाहिय अविरहिंद' काहि विरहियं वा वि'-कितनी उपयोग वर्गणाओं में कौन स्थान अविरहित तथा कौन स्थान विरहित पाया जाता है, के पूर्वाधं के विषय में इस प्रकार कथन किया गया है।
उपयोग वर्गणाएं ( १ ) कषायोदय स्थान ( २) उपयोग काल के भेद से दो प्रकार है . . क्रोधादि प्रत्येक कषाय के जो असंख्यात लोक प्रमाण उदयानुभाग सम्बन्धी विकल्प हैं, उन्हें कषायोदयस्थान कहते हैं । मार्गाचादि प्रत्या कषावकागजन्यनुपयोग काल से लेकर उत्कृष्ट उपयोग काल तक भेद हैं, उन्हें उपयोग-काल स्थान कहते हैं । “एदाणि दुविहाणि विट्ठाणा णि उधोग-बग्गणानो ति बुच्चति" ( १६५८ ) इन दोनों प्रकार के स्थानों को उपयोग वर्गणा कहते हैं।
शंका-किन जीवों से किस गति में निरन्तर स्वरूप से उपयोग काल स्थानों के द्वारा कौन स्थान विरहित है और कोन स्थान अविरहित सहित पाया जाता है ।
समाधान-इस अर्थ विशेष सूचक ये नरकादि मार्गणाएं कही आती हैं । नरकगति में एक जोब के क्रोधोपयोग काल-स्थानों में नाना जीवों को अपेक्षा यवमध्य होता है । यह यवमध्य संपूर्ण उपयोगप्रद्धा स्थानों के संख्यातवें भाग रूप होता है । यवमध्य के ऊपर
और नीचे एक गुण-वृद्धि और एक गुण हानिरूप स्थान प्रावली के प्रथम बर्गमूल के असंख्यात भाग प्रमाण है। ___ यवमध्य के अधस्तनवर्ती सर्वगुणहानि स्थानान्तर जीवों से प्रापूर्ण हैं; किन्तु सर्व प्रद्धा स्थानों का असंख्यात बहुभाग ही प्रापूर्ण है अर्थात् प्रसंख्यातेकभाग जोवों से विरहित पाया जाता है।
* एत्थ दुविहानो उवप्रोगबरगणाप्रो कसाय उदयटाणाणि च . - उबजोगट्ठाणाणि च । पृ. १६५७