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________________ दशविध काल व्यतीत हुआ। एवं मायोवजुत्ताणं दसावहा कालोइस मायोपयुक्त जीवों में दविध काल है। जो इस समय लोभ कषाय से उपयुक्त जीव हैं, उनके अतीत काल में द्विविध मान काल, द्विावध क्रोध काल, द्विविध माया काल, तथा त्रिविध लोभ काल इस प्रकार लोभोपयुक्त जीवों के अतीत कान में नविध काल व्यतीत हुप्रा । इस प्रकार मब भेद मिलकर १२+११ + १० +६= ४२ व्यालीस भेद होते हैं । इनमें से अल्पबहुत्व कथन हेतु द्वादश स्वस्थान पदों को ग्रहण करना चाहिए, “एत्तो नपरम मन्याण पदाणि गहियाणि' वर्तमान में लोभोपयुक्त जीवों का लोभ काल स्तोक है। मायोपयुक्तों का माया काल अनंत गुणित है । क्रोधोपयुक्तों का क्रोधकाल अनंतमुमिलि । मनोवृत्तों विमानकालनहाराज गुणित है। लोभोपयुक्तों का नोलोभ काल पूर्वोक्त मानोपयुक्तों के काल से अनंत गुणित है । मायोपयुक्तों का नोमायाकाल अनंत गुणा है । क्रोधोपयुक्तों का नोक्रोधकाल अनंत गुणित है । मानोपयुक्नों का नोमान काल अनंतगुणित हैं।। मानोपयुक्तों का मिश्रकाल पूर्वोक्त मानोपयुक्तों के नोमान काल की अपेक्षा अनंतगुणित है। क्रोधोपयुक्तों का निकाल विशेषाधिक है। मायोपयुक्नों का मिश्रकाल विशवायर है । लोभोपयुक्तों का मिश्रकाल विशेषाधिक है । (१६५४-१६५७) इस प्रकार ब्यालीस पदों का अल्मबहुत्व कहना चाहिए तो बादालीस-पदपा-बहुओं काय' । इस विषय में वीरसेन प्राचार्य कहते है "बादालीस-पदमप्या-बहुअं संपहिकाले बिमिट्टोबासाभावादा ण सम्ममवगम्मदि त्ति ण तविवरणं कीदरे । १६५७ -यालोस पदों का अल्पबहुत्त्र सम्बन्धी विशिष्ट उपदेश का इस काल में प्रभाव होने से उसका अवबोध नहीं होने से उसका विस्तार नहीं किया गया है।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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