________________
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
( १०० ) है, प्रतीत काल में वे क्या उसी कषाय से उायुक्त थे ?" के संबंध प्रतिपादना क्रमागत है। ___इस विषय में इस प्रकार प्ररूपणा है - जो जीव वर्तमान समय में मान कषायोपयुक्त हैं, वे अतीत कालमें मान काल नोमानकाल तथा मिश्रकाल में थे।
जिस कालविशेष में वर्तमान कालीन मानकषायोपयुक्त जीवराशि मानोपयोग से परिणित पाई जाती है, वह काल मानकाल है। इस जीवराशि में से जिस काल विशेष में एक भी जीव मानकषाय में उपयुक्त न होकर क्रोध, माया तथा लोभ कपायों में यथा विभाग परिणत हो, उस काल को नोमानकाल कहते हैं । यहां विवक्षित मान से अतिरिक्त शेष कषाय नोमान कहे जात हैं। इसी विवक्षित जीव राशि में से जिसकाल में अल्प जीव राशि मानकषायसे उपयुक्त हो तथा थोड़ो जीवराशि क्रोध, मान तथा लोभकषाय से यथासंभव उपयुक्त होकर परिणत हो, उस काल को मिश्र काल कहते हैं । (१६५१)
इस प्रकार क्रोध कषायमें, माया कषाय में तथा लोभ कपाय में तीन प्रकार का काल होता है। इस प्रकार मान कपायोपयुक्त जीबों का काल बारह प्रकार होता है । ____जो जीव वर्तमानकाल में क्रोधोपयुक्त हैं, उनका अतीत काल में 'माणकालो णन्थि, पोमाणकालो मिम्स कालो य'-मान काल नहीं है, किन्तु नोमानकाल तथा मिश्रकाल ये दो ही काल होते हैं। क्रोधोपयुक्त जीवों के एकादश प्रकारका काल प्रतीत काल में व्यतीत हुअा।
जो इस समय मायोपयुक्त हैं, उनके अतीतकाल में द्विविधमानकाल, द्विविध क्रोधकाल, त्रिविध मायाकाल तथा तीन प्रकार का लोभकाल इस प्रकार मायोपयुक्त जीवों के अतीत काल में