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________________ और उत्कृष्ट मानकषायोपयोगकालमें जोव असंख्यातगुणित होते हैं। इससे अनुत्कृष्ट-अजघन्य अनुभाग स्थानमें तथा जघन्य मानकषायोपयोगकालमें जीव असंख्यातगुणित होते हैं। इससे अनुत्कृष्टअजघन्य अनुभाग स्थानमें तथा अनुत्कष्ट प्रजघन्य मानकषायोपयोग काल में जीव असंख्यातगुणित होते हैं। १ यहां जिस प्रकार नौ पदों के द्वारा मानकषायोपयोग परिणत जीवों का वर्णन हुआ है, उसी प्रकार क्रोध, माया तथा लोभ इन कषायत्रयसे परिणत जीवों के अल्पबहुत्व का अवधारण करना चाहिए, कारण इनमें विशेषता का अभाव है। परस्थान अल्पबहुत्व के विषय में चूणि सूत्रकार कहते हैं "एत्तो छत्तीसपदेहि अप्पाबहुअं काय" (१६४६) । इस स्वस्थान अल्पबहत्व से परस्थान संबंधी अल्पबहत्व छत्तीस पदों से प्रतिबद्ध मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधासागर जी महाराज करना चाहिये मार्गदर्शक वह छत्तीस पदगत अल्लबहुत्व इस प्रकार कहा गया है:उत्कृष्ट कषायोदय स्थान में उत्कृष्ट माया कषायके उपयोगकाल से परिणत जीव विशेषाधिक होते हैं । इससे उत्कृष्ट कषायोदय स्थान में उत्कृष्ट लोभ के उपयोगकाल से परिणत जीव विशेषाधिक हैं। इससे उत्कृष्ट कषायोदयस्थान में जघन्य मानकषाय के उपयोगकाल से परिणत जीव अंसख्यातगुणित होते हैं । इससे उत्कृष्ट कषायोदय स्थान में जवन्य क्रोधोपयोगकालसे परिणत जीव विशेषाधिक हैं। इससे उत्कृष्ट कषायोदय स्थान में जघन्य माया कषाय के उपयोग काल से परिणत जीव विशेषाधिक हैं । इससे उत्कृष्ट कषायोदय स्थान में जघन्य लोभ कषाय के उपयोग काल से परिणत जीव विशेषाधिक हैं। इससे उत्कृष्ट कषायोदय स्थान में अजघन्य-अनु...' ट मान कषाय के उपयोग काल में जीव प्रसंख्यात गुणे हैं । णागहस्थिलाहा माणकसायस्स णवहिं पदेहिं पयदप्पाबहुप्रविणिण्णनो कोह-माया-लोभाणं पि कायब्दो, विसेसाभावादो (१६४६)
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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