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________________ था प्रभु | .:: ... दशाला खामा .म. बुलडाणा कषाय का संयोग होगा; जैसे क्रोध और मान, क्रोध और माया, क्रोध और लोभ । यदि तीन कषाय हों तो क्रोध के साथ अन्य कषायों का संयोग होगा; जैसे क्रोध के साथ मान और माया, अथवा क्रोध के साथ 'मान और लोभ अथवा क्रोध के साथ माया और लोभ तथा यदि चारों कषाय हों, तो क्रोध, मान, माया और लोभ ये कषाय चतुष्टय रहेंगी। . जैसा नरकात में क्रोध कषायके साथ शेप विकल्पों का स्पष्टीकरण किया गया है, उसी प्रकार देवगति में लोभ कषाय के साथ शेष विकल्पों का वर्णन जानना चाहिए। ___ यह भी ज्ञातव्य है कि एक एक कषाय के उदय स्थान में प्रसार्थिका जीजास्वसिविलो श्रीसंस्थानचे भाग मात्र होने हैं। एक एक कषाय के उपयोगकाल-स्थानमें उत्कर्षसे असंख्यात जगत् श्रेणी प्रमाण त्रस जीव रहते हैं । इससे यह अर्थ स्पष्ट होता है, कि सभी गति वाले जीव नियमसे अनेक कषाय-उदय स्थानों में तथा अनेक कषायोपयोगकाल स्थानों में उपयुक्त रहते हैं । अल्पबहुत्व को नौ पदों द्वारा इस प्रकार कहा गया है :उत्कृष्ट कषायोदय-स्थान में तथा उत्कृष्ट मानकषायोपयोगकाल में जीव सबसे कम हैं। इससे उत्कृष्ट कषायोदयस्थानमें तथा जघन्य मानकषायोपयोगकालमें जोव असंख्यातगुणित होते हैं। इससे उत्कृष्ट कषायोदयस्थान में और अनुत्कृष्ट-मजघन्य मानकषायोपयोग काल में जोव उपयुक्त पद से असंख्यातगुणित होते हैं। इससे जघन्यकषायोदय स्थान में और उत्कृष्ट मानकषायोपयोग कालमें जीव असंख्यातगुणित होते हैं। ... . इससे जघन्य कषायोदय स्थानमें तथा जघन्य मावोदय कषायोपयोग कालमें जीव असंख्यातगुणित हैं। इससे जघन्य कषायोदयस्थानमें और अनुत्कृष्ट-प्रजघन्य मानकषायोपयोगकालमें जीव असंख्यातगृणित होते हैं । इससे अनुत्कृष्ट-अजघन्य अतुभाग स्थानमें
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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