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अणुभागो ति भागंतस्साभिप्पायो ण कसायदो वदिरित्तो अणुभागो अस्थि ! कोपो कोधाभागो। क्रोध पर क्रोधानुभागो नान्यः कश्चिदित्यर्थः । एवं माण-माया-लोभाणं' । (१६.३९)
अनुभाग कारण है। कषाय परिणाम उससे उत्पन्न कार्य है,
..... मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज इस प्रकार अनुभाग और कषाय में कार्य कारण का भेद है ऐसा नहीं कहना चाहिए अर्थात् अनुभाग और कंपाय भिन्न भिन्न नहीं है। "अणुभागो कारणं कसायपरिणामो तक्कज्जमिदि ताणं भेदो ण वोत्तजुत्तो"।
यह उपदेश प्रवाहमान नहीं है। प्रवाहमान दूसरा उपदेश है, जो कषाय और अनुभाग में भिन्नता मानसा है। कार्य और कारण में भिन्नता के लिये भेद नय का अवलंवन किया गया है। कार्य ही कारण नहीं है। ऐसा मानने का निषेध है-"एत्य बुण अपणो कसामो अण्णो च अणुभागो त्ति विवक्खियं कज्जकारणाणं भेदणयावलंबणादो । ण च कज्ज चेव कारण होइ, विष्यडिसेहादो" (१६४१)
१ आर्यमंक्षु प्राचार्य का उपदेश अप्रवाह्यमान है तथा नांगहस्ति प्राचार्य का उपदेश प्रवाहमान जानना चाहिए
नरकगति तथा देवगति में एक, दो, तीन अथवा चार कषायों से उपयुक्त जीव पाये जाते हैं। तिथंच तथा मनुष्यगति में चारों कषायों से उपयुक्त जीवराशि ध्रुवरुप से पाई जाती है । इस कारण उनमें शेष विकल्पों का प्रभाव है, "णिरयदेवगशेणमेदे वियप्पा अस्थि, सेसाप्रो गदीग्रो णियमा चदुकसायोबजुत्तानो" |
नरकगति में यदि एक कषाय हो, तो नियमसे क्रोध कषाय होती है। यदि वहां दो कषाय होगी तो क्रोधकषाय के साथ अन्य
अज्जमखुभयवंताणं उवएसो एत्थापनाइज्जमाणो गाम । णागहस्थिखवणार्ण उधएसो पवाइज्जतमो त्ति घेतब्बो १६४१