SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कषायों के उदयस्थानों को भावोपयोग वर्गणा कहते हैं"भावो-वजोगवग्गणाप्रो णाम कसायोदयट्ठाणाणि" (१६३७)। भाष की अपेक्षा तीव्र, मन्द आदि भावों से परिणत कषायों के जघन्य विकल्प से लेकर उत्कृष्ट विकल्प तक षड्वृद्धिक्रमसे अवस्थित उदयस्थानों को भावोपयोग घर्गणा कहते हैं । १ ।। वे कषायोदयस्थान असंख्यातलोकों के जितने प्रदेश होंगे, उतने प्रमाण हैं । वे उदयस्थान मान कषायमें सबसे अल्प हैं। क्रोध में विशेषाधिक हैं । माया में विशेषाधिक हैं । लोभमें विशेषाधिक हैं। दोनों प्रकारको वर्गणा कथन, प्रमाण तथा अल्पबहुत्व प्रागममें विस्तार पूर्वक कहा गया है। क्रमप्राप्त गाथा नं. ६६ को चौथी गाथा कहा है । 'एक्कम्हि मार्गदर्शय प्रभा एक सुकिसायाम्मजीएक्ककालण । उवजुत्ता का च गदी विसरिसमुवजुज्जदे का च ॥' इस गाथा का अर्थ है, एक कषाय संबंधी एक अनुभाग में तथा एक ही काल में कौनसी गति उपयुक्त होती है अथवा कोनसी गति विसदृश अर्थात् विपरीत क्रमसे उपयुक्त होती है? ___ इसके समाधान में चूणिकार कहते हैं 'एत्थ विहासाए दोषिण उवएसा'-इस गाथा की विभाषा में दो प्रकार के उपदेश हैं । एक उपदेश के अनुसार जो कषाय है, बही अनुभाग है। कषायसे भिन्न अनुभाग नहीं है। क्रोधकषाय क्रोधानुभाग है। मानकषाय, मायाकषाय तथा लोभकषाय क्रमशः मानानुभाग, मायानुभाग तथा लोभानुभाग हैं। "एक्केण उवएसेण जो कसाम्रो सो अणुभागो, तत्थ जो कसाम्रो सो . १ भाषदो तिव्यमंदादिभावपरिणदाणं कसायुदयट्ठाणाणं जहण्णवियप्पप्पहुडि जावुक्कस्सवियप्पोत्ति छवढिकमेणावट्ठियाणं भावोवजोगवगणा त्ति बबएसो। भावविसेसिदानो उबजोगवाग्गणाओ भावोबजोगवग्गणाप्रो सि वियक्खियत्तादो (१६३६)
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy