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देवों में नारकियों के समान क्रोधादि कषाय सम्बन्धी उपयोगवार कहे गए हैं। इतनी विशेषता है कि जिस प्रकार १ नारकी जीवों के क्रोत्रोपयोग सम्बन्धी विकल्प हैं, उस प्रकार के विकल्प देवों में लोभोपयोग के विषय में ज्ञातव्य हैं। नारकियों के जैसे मानोपयोग के विकासे देवों के साया संबंधी विकल्प है । नारकियों के जैसे मायोपयोग के विकल्प है, वैसे देवों के मान संबंध हैं। नारकियों के जैसे लोभोपयोग के विकल्प हैं, देवों के उस प्रकार क्रोधोपयोग के विकल्प हैं । (१६३१ )
प्रश्न -" उवजोग वग्गणाश्रो कम्हि कसायम्हि केत्तिया होंति ? उपयोग वर्गणाएं किस कषायमें कितनी होती हैं ?
समाधान — यहां यह बात ज्ञातव्य है कि उपयोग वर्गणाएं ( १ ) कालोपयोग-वगंणा ( २ ) भावोपयोग वर्गणा के भेदसे दो प्रकार हैं ।
१ क्रोधादिकषायों के साथ जो जीव का संप्रयोग हैं, बह उपयोग है । कषायों के संप्रयोग रुप कषायोपयोग के काल को कषायोपयोग काल कहते हैं । वर्गाणा, विकल्प तथा भेद एकार्थवाची हैं । 'वग्गणा वियप्पा - भेदा ति एयट्ठो' (१६३६ )
१ जहा परइयाणं कोहोजोगाणं वियप्पा तहा देवाणं लोभोवजोगाणं वियप्पा । जाणेरइयाणं माणोवजोगाणं वियप्पा तहा देवाणं मायोवजोगाणं वियप्पा । जहाणेरइयाणं मायोवजोगाणं वियप्पा तहा देवाणं माणोवजोगाणं वियप्पा | जहानेर इयाणं लोभोवजुत्ताणं वियप्पा तहा देवाणं कोहोवजोगाणं वियप्पा
२ गो णाम कोहादिकसा एहि सह जीवस्स संपजोगो । कालविसयादो उवजोगवग्गणाओ कोलोवजोग वग्गणाश्रो त्ति गहणादो।