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________________ ( १ ) प्रकार माया और लोभ कषाय के बार भी जानना चाहिये । “एवं सेसासु गदोसु" (१६२९) इस प्रकार शेष अर्थात तिर्यंच, मनुष्य और देवगति में वर्णन जानना चाहिये। नरकगति के जिस भवग्रहण में क्रोध कषाय संबंधी उपयोगबार संख्यात होते हैं, उसी भव-ग्रहणमें उसके मानोपयोगबार नियमसे संख्यात ही होते हैं। इसी प्रकार माया और लोभ संबंधी उपयोग के विषय में जानना चाहिये। नरकगति के जिम भवग्रहण में मानोपयोग संबंधी उपयोग के बार संख्यात होते हैं, वहां क्रोधोपयोग संख्यात भी होते हैं तथा असख्यात भी होते हैं। माया के उपयोग तथा लोभ के उपयोग मार्गदर्शक :- आचार्य श्री विद्धिासागर जी महाराज नियम से संख्यात होते हैं। जहां मायाके उपयोग संख्यात हैं, वहां । क्रोधोपयोग, मानोपयोग संख्यात व असंख्यात हैं । लोभ के उपयोग नियमसे संख्यात होते हैं। नरकगति के जिस भव-ग्रहण में लोभकषाय संबंधी उपयोगबार संख्यात होते हैं, वहां क्रोधोपयोग, मानोपयोग, मायोप्रयोग के वार भाज्य हैं अर्थात् संख्यात भी है, प्रसंख्यात भी हैं। . नरकगति के जिस भवग्रहणमें क्रोधोपयोगवार असंख्यात हैं, वहां शेष कषायों के उपयोगवार संख्यात होते हैं; तथा असंख्यात भी होते हैं। ___ नारकी के मानोपयोगके बार जहां असंख्यात होते हैं, वहां क्रोधोपयोग के वार नियम से. असंख्यात होते हैं । मानोपयोग और लोभोपयोग के बार भजनीय हैं अर्थात् संख्यात होते हैं, असंख्यात भी होते हैं। नारकी के जहां माया कषाय के उपयोगवार असंख्यात होते हैं, वहां क्रोध और मान के उपयोगवार असंख्यात होते हैं । लोभोपयोगवार संख्यात होते हैं, असंख्यात भी होते हैं। जहां लोभोपयोग-वार असंख्यात होते हैं, वहां क्रोध, मान तथा माया कषायके उपयोगवार नियमसे असंख्यात होते हैं।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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