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इस प्रोध प्ररूपणाके समान तिर्यंचगति तथा मनुष्यगति में वर्णन 'जानना चाहिये "एव प्रोघेण । एवं तिरिक्खजोणिगदीए मणुसगदीए च।"
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज ... नरकगति में क्रोध, मान, पुनः क्रोध, मान इस क्रमसे सहस्त्रों परिवर्तन बारों के बोतने पर तदनंतर एक बार लोभ कपायरुप उपयोग परिवर्तित होता है। .. देवगतिमें लोभ, माया, पुनः लोभ, माया इस क्रमसे सहस्त्रों बार परिवर्तनवारों के बीतने पर तदनंतर एक बार मान कषाय संबंधी उपयोग का परिवर्तन होता है । २ - मान कषाय में उपयोग संबंधी संख्यात-सहस्य परिवर्तनवारों के व्यतीत होने पर तदनंतर एक बार क्रोध कषायल्प उपयोग परिवर्तित होता है । ३
- शंका- "एकस्मि . भवग्गहणे एक्ककसायम्मि कदि च उवजोगा"--एक भव के ग्रहण करने पर तथा एक कषाय में कितने उपयोग होते हैं ?
* समाधान-एक नारकीके भवन हणमें क्रोध कषाय संबंधी उपयोग के बार संख्यात होते हैं। अंसंख्यात भी होते हैं। मान के उपयोग के बार संख्यात होते हैं। असंख्यात भी होते हैं। इस
२ "णिरयगईए कोहो माणो, कोहो माणो ति बार-सहस्साणि परियचिदुण सय माया परिवत्तदि। मायापरिवत्तेहि सहस्सेहिं गदेहि लोभो परिवत्तदि" (१६२४) ।
२ देवगदीए लोभो माया, लोभो माया त्ति वारसहस्साणि गंत्ण तदो सई माण कसायो परिवत्तदि ।
३ माणस्स संखज्जेसु गरिसेसु. गदिसु तंदी सई कोधो परिवत्तदि ( १६२६)