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________________ (. ८३.). , - चूणि सूत्रकार कहते हैं "यडिभुजगारो ठिदिभुजगारी अणुभाग भुजगारो पदेमभुजगारो" ( पृष्ठ १५८६ )-प्रकृति भुजाकार, स्थिति भुजाकार, अनुभाग भुजाकार तथा प्रदेश भुजाकार रुप भुजाकार के चार प्रकार हैं। यहां भुजाकार के सिवायं पदतिक्षेप और वृद्धि उदोरणा भी विभासनीय है। शंका – वेदक अधिकार में उदय और उदोरणा का वर्णन तो ठीक है, किन्तु यहां गाथा ६२ में बंत्र, संक्रम और सत्कर्म का कथन विषयान्तर सा प्रतीत होता है ? . मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधासागर जी महाराज समाधान- ऐसा नहीं है । उदयोदी रण विसयणिण्णयजाणट्ठमेव टॅमि पि परुवणे विरोहाभावादो" (१५७८) उदय और उदीरणा विषय-निर्णय के परिज्ञानार्थ बंध, संक्रमादि का कथन करने में कोई विरोध नहीं आता है। श्री प्रश f.:: : :... कामाला उपयोग अनुयोगद्वार खान जि. बुलडाणा केवचिरं उवजोगो कम्मि कसायम्मि को व केणहियो।। को वा कम्मि कसाए अभिक्खमुबजोगमुवजुत्तो ॥ ६३ ॥ __ किस कषाय में एक जीव का उपयोग कितने काल पर्यन्त होता है ? कौत उपयोग काल किससे अधिक है ? कौन जीव किस कषाय में निरन्तर एक सदृश उपयोग से उपयुक्त रहता है ? एक्कम्मि भवग्गहणे एक्ककसायम्मि कदि च उवजोगा। एक्कम्मि य उवजोगे एक्कसाए कदि भवाच ॥ ६४ ॥___ एक भवके ग्रहण कालमें तथा एक कषाय में कितने उपयोग होते हैं ? एक उपयोग में तथा एक कषाय में कितने भव होते हैं ? उवजोगवग्गणाओ कम्मि कसायम्मि केत्तिया होंति । . करिस्से. च गदीए केवडिया वग्गणा होति ।। ६५ ॥.
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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