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मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
किस कषायमें उपयोग संबंधी वर्गणाएं कितनी होती हैं ? किस गति में कितनी वर्गणाएं होती हैं ? एक्कम्हि य अणुभागे एक्क्कसायम्मि एवककालेण । उवजुत्ता का च गदी विसरिस-मुबजुज्जदे काच॥६६ ॥
एक अनुभाग में तथा एक कषायमें एक काल की अपेक्षा कौनसी गति सदृशरुप से उपयुक्त होती है ? कौनसी गति विसदृशरुपसे उपयुक्त होती है ? केवडिया उवजुत्ता सरिसीसु च वग्गणा-कसाएसु । केवडिया च कसाए के के च विसिस्सदे केण ॥ ६७ ॥
सदृश कषाय-उपयोग वर्गणाओं में कितने जीव उपयुक्त हैं ? चारों कषायों से उपयुक्त सब जीवों का कौनसा भाग एक एक कषाय में उपयुक्त है ? किस किस कषायसे उपयुक्त जीव कोन कौनसी कषायों से उपयुक्त जीवराशि के साथ गुणाकार और भागहारकी अपेक्षा होन अथवा अधिक होते हैं ?
जे जे जम्हि कसाए उबजुत्ता किएणु भूदपुव्वा ते । होहिंति च उवजुत्ता एवं सब्वस्थ बोद्धव्वा ॥१८॥
जो जो जीव वर्तमान समय में जिस कषाय में उपयुक्त पाये जाते हैं, वे क्या अतीत काल में उसी कषाय से उपयुक्त थे तथा आगामी काल में क्या वे उसी कषायरुप उपयोग से उपयुक्त होंगे?
इस प्रकार सर्व मार्गणाओं में जानना चाहिये उवजोगवग्गणाहि च अविरहिंद काहि विरहिदंचावि । पढम-समयोवजुत्तेहिं चरिमसमए च बोद्धव्या ॥६६॥ (७)