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________________ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुबिधासागर जी महाराज कौन किस स्थिति में प्रवेशक है ? कौन किस अनुभाग में प्रवेश कराता है ? इनका सांतर तथा निरंतरकाल कितने समय प्रमाण जानना चाहिए ? विशेष - "यहाँ को कदमाए द्विदीए पवेसगो" इस प्रथम श्रवयव द्वारा स्थिति- उदीरणा सूचित की गई है । 'को व के य श्रणुभागे' इस द्वितीय अवयव द्वारा अनुभाग उदीरणा प्ररुपित की गई है । इसके द्वारा प्रदेश उदीरणा भी निर्दिष्ट की गई है। इसका कारण यह है कि स्थिति और अनुभाग का प्रदेश के साथ अविनाभाव है । "सांतरणिरंतरं वा बाद्धव्वा" के द्वारा उदय और उदीरणा का सांतरकाल तथा निरंतरकाल सूचित किया गया है । 'कदि समया' वाक्य के द्वारा नाना और एक जीव संबंधी काल और अंतर प्ररूपणा सूचित की गई है । 'वा' शब्द के द्वारा समुत्कीर्तना श्रादि अनुयोग द्वारों की प्ररूपणा सूचित की गई है। इससे समुत्कीर्तना आदि प्रलाबहुत्व पर्यंत चौबीस श्रनुयोग द्वारों की यथासंभव उदय और उदीरणा के विषय में सूचना की गई यह श्रवधारण करना चाहिये । बहुगदरं बहुगदर से काले को णु थोवदरगं वा । समयमुदीरेंतो कदि वा समये उदीरेदि ॥ ६१ ॥ विवक्षित समय से अनंतरवर्ती समय में कौन जीव बहुत कर्मों की, कोन जीव स्तोकतर कर्मो की उदीरणा करता है ? प्रति समय उदीरणा करता हुआ यह जीव कितने काल पर्यन्त निरन्तर उदीरणा करता है ? विशेष -- इस गाथा के पूर्वार्ध द्वारा प्रकृति-स्थिति- अनुभाग और प्रदेश सम्बन्धी उदीरणा विषयक भुजगार तथा श्रल्पतर की सूचना दी गई है । उत्तरार्धं गाथा द्वारा भुजगारविषय कालानुयोग द्वार की सूचना दी गई है। इसके द्वारा शेष भनुयोगद्वारों का 1
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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