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________________ ( ६ ) अधःप्रवृत्तादि तीन करणों के बिना ही कर्म प्रकृतियों के परमाणुओं का अन्य प्रकृति रूप परिणमन होना उद्वेलन संक्रमण है । जैसे रस्सी निमित्त विशेषको पाकर उकल जाती है, इसी प्रकार इन त्रयोदश प्रकृतियों में उद्वेलन संक्रमण होता है । वे प्रकृतियां इस प्रकार हैं -- आहारदुंगं सम्भं मिस्सं देवदुगणारय- चउक्कं । उच्च मणुद्रुगमेदे तेरस उव्वेरुलणा पयडी ॥ ४१५ गो.. ।। आहारक शरीर, आहारक प्रागोपांग, सम्यक्त्व प्रकृति, मिश्र प्रकृति, देवयुगल, नारक चतुष्क, उच्चगोत्र, मनुष्यगति, मनुष्यगति प्रायोग्यानुपूर्वी ये त्रयोदश उद्वेलना प्रकृति हैं। आचार्य उन त्रयोदश उद्वेलना प्रकृतियों में मोहनीय कर्म संबंधी सम्यक्त्व प्रकृति तथा सम्यग्मिथ्यात्व ये दो प्रकृतियां पाई जाती हैं । अनादि मिथ्यादृष्टि जीव के 'को सद्भाव नहीं पाया जाता है । उपशम सम्यक्त्वी जीव के प्रथमोपशम सम्यक्त्व रूप परिणामों के द्वारा मिथ्यात्व प्रकृति को त्रिरूपता प्राप्त होती है, जैसे यत्र से पीसे जाने पर कोदों का त्रिविध परिणमन होता है । गोम्मटसार कर्मकांड में कहा है जंतेण को वा पढमुवसमभावजंतेण । मिच्छं दव्वं तु तिथा असंखगुणहीणदव्यकमा ॥ २६ ॥ यंत्र द्वारा कोदों के दले जाने पर कोंडा, धान्य तथा भुसी निकलती है, इसी प्रकार प्रथमोपशम सम्यक्त्वरुप भावों से मिथ्यात्व का मिथ्यात्व सम्यक्त्व और मिश्र प्रकृति रुप परिणमन होता है | वह द्रव्य असंख्यात गुणहीनक्रम युक्त होती है । मिथ्यात्व प्रकृति का सम्यक्त्व और मिश्र प्रकृतिरूप परिणमन होने के अंतर्मुहूर्त पश्चात् वह उपशम सम्यक्वी गिरकर मिथ्यात्वी होता है । उसके मिध्यात्वी बनने के अन्तर्मुहूर्त काल पर्यन्त अधःप्रवृत्त
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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