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श्राद्रप्रभु
शिवराम नाटयाला
( ६६ )
खामगांव जि. बुलडाणा
संक्रमण होता है । उसके अनंतर उद्वेलना संक्रमण होता है । इसका उत्कृष्टकाल पल्योपमका श्रसंख्यात वा भाग है । इतने काल पर्यन्त वह मिथ्यादृष्टि जीव मिश्र तथा सम्यक्त्व प्रकृति का उद्वेलन करता है !
प्रथमोपशम सम्यक्त्वो मिथ्यात्वी होने के कारण अंतर्मुहूर्त पश्चात् मिश्र और सम्यक्त्व प्रकृति को पल्पोप के असंख्यातवें भाग प्रमाण उद्वेलना करता है । पुनः द्वितीय अंतर्मुहूर्त के द्वारा पत्योपम के प्रसंख्यातवें भाग प्रमाण स्थिति खण्ड को उत्कीर्ण करता है। यह क्रम पल्योपम के प्रसंख्यातवें भाग तक जारी रहता है। इतने काल में दोनों प्रकृतियों का उद्वेलन द्वारा क्षय हो जाता है | यह कथन स्थिति संक्रम की अपेक्षा किया गया है ।
प्रदेश संक्रमण की दृष्टि से पूर्व पूर्व स्थिति खण्ड से उत्तरोत्तर स्थिति खंड प्रदेश सत्र में श्रल्पप्रदेशों की उद्वेलना की जाती है । द्वितीयादि समयों में असंख्यात गुणित, श्रसंख्यात गुणित प्रदेशों की उद्वेलना की जाती हैं । यह क्रम प्रत्येक अंतर्मुहूर्त के अंतिम समय पर्यन्त रहता है ।
यह जीव कुछ प्रदेशों की उद्वेलना कर स्वस्थान में हो नोचे निक्षिप्त करता है और कुछ को परस्थान में निक्षिप्त करता है ।
प्रथम स्थिति खण्ड में से प्रथम समय में जितने प्रदेश उकेरता है, उनमें से परस्थान अर्थात् परप्रकृतिरुप में अल्पप्रदेश निक्षेपण करता है किन्तु स्वस्थान में उनसे प्रसंख्यातगुणित प्रदेशों का
निक्षेपण करता हैं। इससे द्वितीय समय में स्वस्थान में संख्यातगुणित प्रदेशों का निक्षेपण करता है, किन्तु परस्थान में प्रथम समय के परस्थान-प्रक्षेप से विशेषहीन प्रदेशों का प्रक्षेपण करता है । यह क्रम प्रत्येक अन्तर्मुहूर्त के अन्तिम समय पर्यन्त जारी रहता है । यह उद्वेलन - संक्रमण का क्रम उक्त दोनों प्रकृतियों के उपान्त्य स्थिति खण्ड तक चलता है । अन्तिम स्थिति खण्ड में गुणसंक्रमण और सर्वसंक्रमण होते हैं।