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मार्गकि ) आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
नपुंसकवेदी—
उगुवीस अहारसयं चोइस एक्कारसादिया सेसा । पढ़े सुट्टामा सए चोइसा होंति ॥५०॥
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नपुंसक वेदियों में उन्नीस प्रकारह, चौदह तथा ग्यारह को यादि लेकर शेष स्थान ( दश, नौ, आठ, सात, छह, पांच, चार, तीन, दो और एक ) मिलकर चौदह शून्य हैं |
स्त्रीवेदी
अट्ठारस चोस द्वाणा सेसा य दसगयादीया | एदे सुकाणा बारस इत्थीसु बोद्धव्वा ॥ ५१ ॥
स्त्री वेदियों में ग्रठारह चौदह प्रकृतिक स्थान तथा दश को लेकर एक पर्यन्त दश स्थान मिलकर द्वादश शून्य स्थान जानना चाहिए ।
पुरुपवेदी -
चोट्सग - एत्रगमादी हवंति उवसामगे च खवगे च । एदे सुरापटाखा दस विय पुरिसेसु बोद्धव्या ॥५२॥
पुरुषवेदी जीवों में, उपशामक तथा क्षपक में चौदह प्रकृतिक स्थान तथा नौ से एक पर्यन्त नौ स्थान कुल मिलकर दस स्थान शून्य स्थान हैं ।
क्रोधादिकषायी
रराव अटठ सत्त छक्क पराग दुगं एक्कयं च बोद्धव्वा । सुगाट ठाणा पढम - कसायोवजुते ॥५३॥
पदे
प्रथम कषाय से उपयुक्त जीवों के अर्थात् क्रोधियों के नौ, आठ, सात, छह, पांच, दो और एक प्रकृतिक ये सप्त शून्य स्थान हैं ।