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________________ ( ५४ ) समाधान-ऐसा नहीं हैं। पारिशष्यन्याय से उसकी वहां ही प्रवृत्ति मानने में विरोध का प्रभावहै शुविद्यासागर जी महाराज सम्यक्त्व और संयम मार्गणामें संक्रमस्थान-- चदुर दुगतेबीसा मिच्छत्त मिस्सगे य सम्मत्ते । वावीस पणय छक्कं विरदे मिस्से अविरदे य ॥ ४३ ॥ मिथ्यात्व गुणस्थानमें सत्ताईस, छब्बीस, पच्चीस तथा तेईस प्रकृतिवाले चार संक्रम स्थान होते हैं । मिश्र गुणस्थानमें पच्चीस और इक्कीस प्रकृतिक दो संक्रम स्थान होते हैं । सम्यक्त्वयुक्त गुणस्थानों तेईस संक्रमस्थान होते हैं। संयमयुक्त प्रमत्तादि गुणस्थानों में बाईस संक्रमस्थान होते हैं । मिश्र अर्थात् संयमासंयम गुणस्थान में सत्ताईस, छथ्वीस, तेईस बाईस और इक्कीस प्रकृतिक पांचसंक्रम स्थान होते हैं । अविरत गुणस्थानमें सत्ताईस, छब्बीस, पच्चीस, तेईस, बाईस और इक्कीस प्रकृतिक छह संक्रम स्थान होते हैं । विशेष-गाथा में आगत---‘मिस्सगे' शब्द द्वारा पांचवे विरताविरत गुणस्थान को ग्रहण किया गया है-"मिस्सग्गणमेत्थ संजमासंजमस्स संगहट्ट ( १००६ )। 'सम्मत्त' शब्द द्वारा सम्यक्त्वोपलक्षित गुणस्थान का ग्रहण किया गया है। यहां संपूर्ण संक्रमस्थान संभव हैं। "सम्मत्तोवलक्खियगुणट्ठाणे सबसंकमट्टाणसंभवो सुगमो ।" । शंका- यहां पच्चीस संक्रमस्थान कैसे संभव होंगे ? १ कयस्थ पणुवीससंक्रमट्ठसंभवो ति णासंकणिज्ज अट्ठावीस.. संतकम्मियोवसम-सम्माइट्ठिपच्छापद सम्माइट्ठिम्मि तदुवलभादो (१००५)
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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