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________________ i मार्गदर्शक ( ५३ ) और अभव्य जीव कितने स्थान पर होते हैं तथा गति आदि शेष मार्गेणा युक्त जीव किन किन स्थानों पर होते हैं ? श्रदयिक प्रादि पंचविध भावों से विशिष्ट जीवों के किस गुणस्थान में कितने संक्रम :- आचार्यथान तथा प्रतिग्रहस्थान होते हैं ? किस संक्रम तथा प्रतिग्रहस्थान की समाप्ति कितने काल में होती है ? इन प्रश्नों के समाधान हेतु पहले गति मार्गेणा के विषय में प्रतिपादन करते हैं : : णिरयगइ अमर पंचिंदियेसु पंचैव संकमद्वाणा । सव्वे मगुसगईए सेसेसु तिगं असण्णी ॥४२॥ - " नरकगति, देवगति, संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यंचों में सत्ताईस छवोस, पच्चीस, तेईस और इक्कीस प्रकृतिक पांच ही संक्रम स्थान होते हैं । मनुष्यगति में सर्व ही संक्रम स्थान होते हैं । शेष एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय तथा असंज्ञी जीवों में सत्ताईस, छब्बीस घोर पच्चीस प्रकृतिक तीन ही संक्रम स्थान होते हैं । विशेष -- सव्वे मणुसगईए- मणुस गईए सव्वाणि वि संकमट्टाणणि संभवंति उत्त होइ, सब्बेसिमेव तत्थ संभवे विरोहाभावादो ( १००५ ) - 'सब्बे मणुस गईए' - इसका अर्थ यह है कि मनुष्यगति में संपूर्ण संक्रम स्थान संभव है क्योंकि वहां संपूर्ण संक्रमों के पाए जाने में विरोध नहीं आता है । 'सेसे सुतिंगं' – सेसग्ग्रहणेण एइंदिय-विगलिदियाणं ग्रहणं 'कायव्वं' – 'सेसेसुतिगं' यहां शेष ग्रहण का अभिप्राय एकेन्द्रिय तथा विकलेन्द्रियों का ग्रहण करना चाहिए । प्रश्न- यहां पंचेन्द्रिय का चतुर्गति-साधारण अर्थं न करके . तिच पंचेन्द्रिय को ही क्यों ग्रहण किया है ? कथमेत्य पंचिदियग्गहणेण च उगइसाहारणेण तिरिक्खाणमेव पडिवत्ती ? ण पारिसेसियणायेण तत्येव सप्पउत्तीए विरोहाभावादो ( १००५ )
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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