________________
( ५२ )
चारितिगचदुक्के तिणि तिगे एक्कगेच बोद्धव्वा । दो दुसु एगाए वा एगा एगाए बोद्धव्वा ॥ ३८ ॥
चार प्रकृतिक स्थान का संक्रम तीन और चार प्रकृतिक दो प्रतिग्रह स्थानों में होता है । तीन प्रकृतिक स्थान का संक्रम तीन और एक प्रकृतिक प्रतिग्रह स्थानों में होता हैं । दो प्रकृतिक स्थान का संक्रम दो तथा एक प्रकृतिक प्रतिग्रह स्थानों में होता है। एक प्रकृतिक स्थान का संक्रम एक प्रकृतिक प्रतिग्रह स्थान में होता है ।
संक्रम स्थानों केमार्गाचा कहते है:--
अणुपुव्वमणपुण्वं भीमभीणं च दस मोहे | सामगे च वगे च संकमे मग्गणोवाया ॥ ३६ ॥
7
प्रकृति स्थान संक्रम में अनुपूर्वी, अनानुपूर्वी, दर्शनमोह के क्षय निमित्त तथा प्रक्षय निमित्तक संक्रम, चारित्र मोह के उपशामना तथा क्षपणानिमित्तक संक्रम ये छह संक्रम स्थानों के अनुमार्गेण के उपाय हैं।
अब प्रदेश की अपेक्षा प्रश्नात्मक दो सूत्र गाथायें गुणधर प्राचार्य कहते हैं:
-
एक कहि य हाणे पडिग्गहे संकमे तदुभए च । भविया वाऽभविया वा जीवा वा केसु ठाणेसु ॥ ४० ॥
कदि कम्हि होंति ठाणा पंचविहे भावविधि विसेस हि । संकमपडिग्गहो वा समायाता वाऽध केवचिरं ॥ ४१ ॥
में
एक एक प्रतिग्रह स्थान, संक्रमस्थान तथा तदुभयस्थान गति आदि मार्गणा स्थान युक्त जीवों का भार्गण करने पर भव्य