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मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
बोस प्रकृतिक स्थान का सक्रम छह तथा पांच प्रकृतिक दो प्रतिग्रह स्थानों में जानना चाहिये। पंचसु च ऊणवीसा अट्ठारस चदुसु होति बोद्धव्या । चोइस छसु पयडीसु य तेरलयं छक्क परणगम्हि ॥३५॥
उन्नीस प्रकृतिक स्थान का संक्रम पांच प्रकृनिक स्थान में होता है । अट्ठारह प्रकृतिक स्थान का संक्रम चार प्रकृतिक स्थान में होता है । चौदह प्रकृतिक स्थान का संक्रम छह प्रकृति वालों में होता है । त्रयोदश प्रकृतिक स्थान का संक्रम छह
और पांच प्रकृतिक प्रतिग्रह स्थानों में जानना चाहिये । पंच चउक्के बारस एक्कारस पंचगे तिग चउक्के । दसगं चउक्क-पणगे रावगं च तिगम्मि बोदव्या ॥३६॥
बारह प्रकृतिक स्थान का संक्रम पांच और चार प्रकृतिक प्रति ग्रह स्थानों में होता है । एकादश प्रकृतिक स्थान का सक्रम पांच, तीन, चार प्रकृतिक प्रतिग्रह स्थानों में होता है । दश प्रकतिक स्थान का चार और पांच प्रकृतिक प्रतिग्रह स्थानों में होता है। नव प्रकृतिक स्थान का संक्रम तीन प्रकृतिक प्रतिग्रह स्थान में जानना चाहिए ।
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1 ला अट्ट दुग तिग चदक्के सत्त चउक्के तिगे च बोध्या जि. बुलडाणा छक्कं दुगम्हि णियमा पंच तिगे एक्कग दुगे वा ॥३७॥ - आठ प्रकृतिक स्थान का संक्रम दो, तीन तथा चार प्रकृतिक प्रतिग्रह स्थानों में होता है। साप्त प्रकृतिक स्थान का संक्रम चार और तीन प्रकृतिक प्रतिग्रह स्थानों में जानना चाहिये। छह प्रकृतिक स्थान का संक्रम नियम से दो प्रकृतिक स्थान में तथा पांच प्रकृतिक स्थान का संक्रम तीन, एक तथा दो प्रकतिक प्रतिग्रहे स्थान में होता है।