SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५५ ) समाधान - ऐसी आशंका नहीं करना चाहिए । अट्ठाईस प्रकृतियों की सत्तावाले तथा उपशमसम्यक्त्व से गिरे हुए सासादन सम्यक्त्वी में वह पाया जाता है । मिथ्यादृष्टि के २७, २६, २५ तथा २३ प्रकृतिक चार संक्रम स्थान कहे गए हैं । सासादन सम्यवत्वी के २५ तथा २१ दो स्थान हैं; सम्यग्मिथ्यादृष्टि के २५, २१ प्रकृतिक दो स्थान हैं । सम्यग्दृष्टि के सर्व स्थान हैं । संयम मार्गणा की दृष्टि से सामायिक तथा छेदोपस्थापना संगत के २५ प्रकृतिक स्थान को छोड़कर शेष बाईस स्थान होते हैं । मार्गदर्शक आचार्य श्री सुविधिसागर जी महारा परिहार विशुद्धिसंयमी के २७, २३, २२, २१ प्रकृतिक स्थान हैं । सूक्ष्मसांपराय तथा यथाख्यात संयमी के चौबीस प्रकृतियों की सत्ता की अपेक्षा दो प्रकृतिक स्थान होता है । लेश्या मार्गणा : तेवीस सुक्कलेस्से छक्कं पुण पायं पुख काऊए खीलाए - तेउ-पम्म लेस्सासु । किण्हलेस्साए ॥ ४४ ॥ शुक्ललेश्या में तेईस स्थान हैं। तेजोलेश्या, पद्मलेश्या में छह स्थान हैं ( २७, २६, २५, २३, २२ और २१ ) । कापोल, नील और कृष्णलेश्या में पांच स्थान (२७, २६, २५, २३, २१ ) कहे गए हैं। वेद मार्गणा : अवयवेद - एवं सुय - इत्थी पुरिसेसु चाणुपुवीए । अट्ठारसयं वयं एक्कारसयं च तेरसया ॥ ४५ ॥ अपगतवेदी, नपुंसक वेदो, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी में आनुपूर्वी से श्रर्थात् क्रमशः श्रठारह, नौ, एकादश तथा त्रयोदश स्थान होते हैं ।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy