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________________ समुत्कोतना की अपेक्षा (१) उत्कृष्टस्थिति प्राप्तक (२) निषेकस्थिति प्राप्तक (३) ययानिषेकस्थिति-प्राप्तक (४) उदयस्थितिप्राप्तक चार प्रकार का प्रदेशाग्र होता है। शंका-स्थिति का क्या स्वरूप है ? 'तत्थ कि द्विदियं णाम ?' समाधान–अनेक प्रकार की स्थितियों को प्राप्त होने वाले कर्मपुजों को स्थितिक या स्थितिप्राप्तक कहते हैं "द्विदीयो गच्छइ ति द्विदियं पदेसगं टिदिपत्तयमिदि उत्त' होइ" शंका–उत्कृष्टस्थिति प्राप्तक का क्या स्वरूप है ? मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज समाधान-जं कम्मं बंधसमयादो कम्माटिदीए उदए दोसइ तमुक्कस्सयट्ठिदि पत्तयं'---जो कर्म बंध काल से लेकर कर्म स्थिति के उदय में दिखाई देता है, उत्कृष्टस्थिति-प्राप्तक कहते हैं । शंका-निषेध-स्थिति प्राप्तक का क्या स्वरूप है ? 1411 माया समाधान—जो कर्मप्रदेशाग्र बंधने के समय में ही जिस स्थिति में निषिक्त किए गए अथवा अपकर्षित किए गए वा उत्कर्षित किए गए, वे उसी ही स्थिति में होकर यदि उदय में दिखाई देते हैं तो मुह उन्हें निषेक स्थिति प्राप्तक कहते हैं-"ज कम्म जिस्से टिदीए णिसित प्रोकडिड्दं वा उक्कडिड्दं वा तिस्से चेव द्विदीए उदए दिस्मइ त णिसेय-ट्ठिदिपत्तयं' शंका--यथानिषेक स्थितिप्राप्तक का क्या स्वरूप है ! समाधान--जो कर्मप्रदेशाग्र बंध के समय जिस स्थिति में निषिक्त किए गए वे अपवर्तना या उद्वर्तना को न प्राप्त होकर सत्ता में उसी अवस्था में रहते हुए यथाक्रम से उस ही स्थिति में
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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