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शंका-कौन कर्मप्रदेश उत्कर्षण से क्षोणस्थितिक हैं ?
समाधान--जो कर्मप्रदेश उदयावली में प्राप्त हैं, वे उत्कर्षण से क्षोणस्थितिक हैं। जो कर्मप्रदेशाग्र उदयावली से बाहर अवस्थित हैं, वे संक्रमण से क्षीणस्थितिक है अर्थात् संक्रामण के अयोग्य हैं । जो प्रदेशाग्र उदयावली से वाहिर विद्यमान हैं, वे संक्रमण से अक्षीणस्थितिक हैं अर्थात् संक्रमण से योग्य हैं।
शंका-कौन कर्मप्रदेश उदय से क्षोपास्थितिक हैं ?
समाधादर्शको कमाधाना सही सामे अयाहासिलस्थितिक है । इसके अतिरिक्त जो प्रदेशाग्न हैं, वे उदय से प्रक्षीणस्थितिक हैं, अर्थात् वे उदय के योग्य है-'उदयादो झीणढिदियं जमुद्दिण्णं तं, त्थि अण्णं "
जहां पर बहुत से कर्मप्रदेशाग्र अपकर्षणा दिसे क्षीणस्थितिक हों, उसे उत्कृष्ट क्षीणस्थितिक कहते हैं। जहां पर सबसे कम प्रदेशाग्र अपकर्षणादि के द्वारा क्षीणस्थितिक हों, उसे जघन्य क्षीणस्थितिक कहते हैं । इसी प्रकार अनुकृष्ट और अजघन्य क्षीणस्थितिक के विषय में जानना चाहिये।
स्थितिक अधिकार
गाथा में आगत 'ठिदियं वा' इस अंतिम पद की विभाषा करते हैं । इस स्थितिक अधिकार में तीन अनुयोगद्वार हैं-~"तत्य तिण्णि अणियोगदाराणि" वे (१) समुत्कीर्तना (२) स्वामित्व (३) अल्पबहुत्व नाम युक्त हैं, 'तंजहा-समुक्कितणा समित्तमप्पाबहुअंच'।