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________________ ( ३८ ) श्रीणाधिकार वावीसवीं गाथा में 'झीणमभोगं' पद आया है । उसकी विभाषा में कहते हैं : — कर्मप्रदेश अपकर्षण से क्षीणस्थितिक हैं, उत्कर्षण से क्षोणस्थितिक हैं, संक्रमण से श्रीणस्थितिक है तथा उदय से क्षीणस्थितिक हैं । 'प्रत्थि प्रकणादो भी ट्ठिदिर्य, उक्कड्डगादो झोट्टिदियं, संक्रमणादो झोणद्विदियं उदयादो झीणद्विदियं' जिस स्थिति में स्थित कर्मप्रदेशाय श्रपकर्षण के अयोग्य होते हैं, उन्हें अपकर्षण से क्षोणस्थितिक कहते हैं । जिस स्थिति में स्थित कर्मप्रदेशाग्र अपकर्षणार्थग्य होते हैं, श्री महाराज क्षणस्थितिक कहते हैं । जिस स्थिति के कर्मपरमाणु उत्कर्षण के प्रयोग्य होते हैं, उन्हें उत्कर्षण से क्षीणस्थितिक कहते हैं। उत्कर्षण के योग्य कर्मपरमाणओं को उत्कर्षण से प्रक्षीणस्थितिक कहते हैं। संक्रमण के अयोग्य कर्मपरमाणुओं को संक्रमण से क्षीणस्थिति और संक्रमण के योग्य कर्मपरमाणुओं को संक्रमण से प्रक्षीणस्थितिक कहते हैं । जिम स्थिति में स्थित परमाणु उदय से निजीर्ण हो रहे हैं, उन्हें उदय से क्षीणस्थिति कहते हैं। जो उदय के योग्य हैं, उन्हें उदय से प्रक्षणस्थितिक कहते हैं । शंका- कौन कर्मप्रदेश अपकर्षण से क्षीणस्थितिक हैं ? समाधान -- जो कर्मप्रदेश उदयावली के भीतर स्थित हैं, वे अपकर्षण से क्षीणस्थितिक हैं। जो कर्मप्रदेश उदयावली से बाहिर विद्यमान हैं वे श्रपकर्षण से प्रक्षीस्थितिक हैं । उनको स्थिति को घटाया जा सकता है । को कगंगा होणे .."
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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