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मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविहिसागर जी महाराज
(१) भागाभाग (२) सर्वप्रदेशविभक्ति (३) नोसर्व प्रदेशविभक्ति (४) उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति (५) अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति (6) अजघन्य प्रदेशविभक्ति (७) सादिप्रदेशविभक्ति (१) अनादिप्रदेशविभक्ति ( ध्रुव प्रदेशविभक्ति (१०) अध्रुव प्रदेशविभक्ति (११) एक जीव की अपेक्षा स्वामित्व (१३) काल (१४) अन्तर (१४) नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय (१४) परिमाण (१० क्षेत्र (१५) स्पर्शन (१९) काल (१९) अंतर (२०) भाव (२१) अल्पबहुत्व ये बाईस) अनुयोग द्वार हैं । इसके सिवाय भुजगार, पदनिक्षेप, वृद्धि तथा स्थान रूप भी अनुयोग द्वार हैं।
उत्तरप्रकृति प्रदेशविभक्ति में पूर्वोक्त द्वाविंशति अनुयोग-द्वारों के सिवाय सन्निकर्ष अनुयोग द्वार भी हैं। इस कारण वहा तेईस अनुयोग द्वार कहे गये हैं। उनके नाम टोकाकार ने इस प्रकार गिनाए हैं :
उत्तरपडि-पदेसविहत्तीए भागाभागो, सब्बपदेसविहत्ती, णोसव्वपदेसविहत्ती, उकस्सपदेसविहत्ती अणुक्कस्सपदेस • विहत्ती जण्यापदेसविहत्तो अजहण्णप्रदेसविहत्ती सादिय-पदेसविहत्ती प्रणादियपदेसविहत्ती धुवपदेसविहत्ती अधुवपदेसविहत्ती एगजीवेण सामित्तं कालो अंतरं गाणाजीबेहि भंगविचो परिमाणं खेत्तं पोसणं कालो अंतरं सण्णियासो भावो अप्पाबहुमं चेदि तेवीस अणियोगद्दाराणि । पुणो भुजगारो, पदणिक्खेवो बढि-ढाणाणि 'चत्तारि अणि प्रोगद्दाराणि । (६६१)