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________________ श्रा : दमन ... न पाठशाला सामजि . बुलडाण होकर उदय में दिखाई दे उसको यथानिषेक-स्थितिप्राप्तक कहते हैं"जं कम्म जिस्से द्विदीए णिसित्तं अपोकडिड्दं अणुक्कड्डिदं तिस्से चेव द्विदीए उदए दिस्सइ तमधाणिसेयद्विदिपत्तयं । शंका--उदयट्टिदि-पत्तयं णाम किं १---उदयस्थितिप्राप्तक किसे कहते हैं ? समाधान-जो कर्म बंधने के पश्चात् जहां कहीं जिस किसी स्थिति में होकर उदय को प्राप्त होता है, उसे उदयस्थिति प्राप्तक कहते हैं--'जं कम्म उदए जत्थ वा तत्थ वा दिरसइ तमुदयट्टिदिपत्तये। उत्कृष्टस्थितिप्राप्तक, निषेकस्थितिप्राप्तक, यथानिषेकस्थिति प्राप्तक तथा उदयस्थितिप्राप्तक के उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य तथा प्रजघन्य ये चार भेद प्रत्येक के जानना चाहिये । मार्गदर्शक :- अपर्मियों की प्रिपेक्षाहत्वीष्टशिषति प्राप्तकों आदि का वर्णन किया गया है । मिथ्यात्वादि मोहनीय कर्म प्रकृतियों का उत्कृष्ट अग्रस्थिति प्रापक उत्कृष्ट अग्रस्थिति प्रापक उत्कृष्ट यथानिषेक स्थिति प्रापक श्रादि के स्वामित्व का यतिवृषभ आचार्य ने विस्तारपूर्वक प्रतिपादन किया है। स्थितिक अल्पबहुत्व पर इस प्रकार प्रकाश डाला गया है । मिथ्यात्व आदि सर्वप्रकृतियों के उत्कृष्ट अग्रस्थिति को प्राप्त कर्मप्रदेशाग्र सबसे कम हैं । उत्कृष्ट यथानिषेक स्थिति प्राप्त कर्मप्रदेशाग्र प्रसंख्यातगुणे हैं । निषेक स्थिति प्राप्त उत्कृष्ट कर्मप्रदेशाग्र विशेषाधिक हैं । इससे उत्कृष्ट उदयस्थिति को प्राप्त कर्मप्रदेशान असंख्यातगुणित हैं। मिथ्यात्व का जघन्य अपस्थिति प्राप्त कर्मप्रदेशाग्र सस्तो हैं । जघन्य निषेकस्थिति प्राप्त मिथ्यात्व के कर्मप्रदेशाग्र अनंतगुणित हैं । जघन्य उदयस्थिति प्राप्त मिथ्यात्व के कर्मप्रदेशाग्न असंख्यातगुणे हैं। जघन्य यथा निषेकस्थिति को प्राप्त प्रदेशाग्र असंख्यातगुणे
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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