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Appendix-2 27 The body which remains in the form of भावय in actions like breathing, etc., is generally called काय, and the योग which happens due to the वीर्य (power) of आत्म-प्रदेश-परिस्पन्द लक्षण, which is born from that काय, is called काययोग. To perform the actions mentioned by the Jinas like सामायिक, अति-श्रवण, गुरु-चंदन, etc., which are the actions of the कारक सम्पवस्व. The body which is born from the उदय of the group of actions of the कामगार-कम or the कार्मणशरीर मामकर्म is called कार्मणकाय. The effort in the form of आत्म-प्रदेश-परिस्पन्दन, which happens only due to the वीर्य (power) born from the कम, without any other मौदारिक, etc., शरीर वर्गणा, is called कार्मणकाययोग. The tendency of the बास्म शक्ति which happens with the help of the कार्मणशरीर is called कार्मणकाययोग. The body which is made up of कम like कार्मणशरीर-शानावरण, etc. कार्मणशरीर नामकर्म - the कर्म whose उदय causes the जीव to obtain the कार्मण-पारीर. कार्मणकामणवंधम नामकर्म - the कर्म whose उदय causes the कार्मणशरीर पुद्गलों to be connected with the कार्मणशारीर पुरुगलों. कार्मणशारीरबंधम मामकर्म - the कर्म whose उदय causes the समाज काशशरीर पुनसों to merge with the previously obtained कार्मणशरीर युगलों. कार्मणसंघातम नामकर्म - the कर्म whose उदय causes the पुद्गलों which have transformed into कार्मणवीर to be in close proximity to each other. काल-अनुयोग - in which the जीव with the desired धर्म are considered in terms of their inferior and superior positions. कोलिकासंगमम नामकर्म - the कर्म whose उदय causes the creation of the एडियों in such a way that there is no मर्कट बंष and बेठन, but the हटियां are connected to the कोली. जसंस्थान नामकर्म - the कर्म whose उदय causes the body to be कुबड़ा. हुमुप चौरासी लाल कुमुवांग के काल को कुमुद कहते है. कुसुबांग-चौरासी लाख महाकमल का एक कुमुदाग होता है. कुशल कर्म - whose विपाक is इष्ट.
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________________ परिशिष्ट-२ २७ रिक आदि सास प्रकार के कामों में जो भावय रूप से रहता है, उसे सामान्यत: काय कहते हैं और उस काय से उत्पन्न हुए आत्म-प्रदेश परि स्पन्द लक्षण वीर्य (पाक्ति) के द्वारा जो योग होता है. यह काययोग है। कारक सम्पवस्व--जिनोक्त क्रियाओं-सामायिक, अति-श्रवण, गुरु-चंदन आदि को करना । कामगार-कमों के समूह अथवा कार्मणशरीर मामकर्म के उदय से उत्पन्न होने वाले काय को कार्मणकाय कहते है। नामयोगका के शाहले नाग योग अर्थात् अन्य मौदारिक आदि शरीर वर्गणाओं के बिना सिर्फ कम से उत्पन्न हए वीर्य (शक्ति) के निमित्त से आत्म-प्रदेश-परिस्पन्दन रूप प्रयत्न होना कार्मणकाययोग कहलाता है। कार्मणशरीर की सहायता से होने वाली बास्म शाक्ति की प्रवृत्ति को कार्मणकाययोग कहते हैं । कार्मणशरीर-शानावरण आदि कमो से बना हुआ शरीर । कार्मणशरीर नामकर्म—जिस कर्म के उदय से जीव को कार्मण-पारीर की प्राप्ति हो । कार्मणकामणवंधम नामकर्म--जिस कर्म के उदय से कार्मणशरीर पुद्गलों का कार्मणशारीर पुरुगलों के साथ सम्बन्ध हो। कार्मणशारीरबंधम मामकर्म-जिस कर्म के उदय से पूर्व गृहीत कार्मणशरीर युगलों के साथ समाज काशशरीर पुनसों का आपस में मेल। कार्मणसंघातम नामकर्म--जिस कर्म के उदय से कार्मणवीर रूप में परिणत पुद्गलों का परस्पर सानिध्य हो। काल-अनुयोग हर-जिसमें विवक्षित धर्म वाले जीवों को जघन्य व उस्कृष्ट स्थिति का विचार किया जाता है। कोलिकासंगमम नामकर्म-जिस कर्म के उदय से एडियों की रचना में मर्कट बंष और बेठन न हो किन्तु कोली से हटियां जुड़ी हुई हों। जसंस्थान नामकर्म-जिस कर्म के उदय से शरीर कुबड़ा हो । हुमुप--चौरासी लाल कुमुवांग के काल को कुमुद कहते है। कुसुबांग-चौरासी लाख महाकमल का एक कुमुदाग होता है। कुशल कर्म----जिसका विपाक इष्ट होता है।
SR No.090244
Book TitleKarmagrantha Part 6
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size9 MB
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