________________
ज्ञानावरण आदि अष्ट कर्मों को बंधयोग्य प्रकृतियाँ १२० हैं |
· मार्गणाओं में ओध (सामान्य) और गुणस्थानों को अपेक्षा बन्ध-स्वामित्व का वर्णन किया गया है कि सामान्य से किस मार्गणा में कितनी प्रकृतियाँ और गुणस्थान की अपेक्षा कितनी प्रकृतियां बंधयोग्य हैं ।
माषाओं में बन्ध-विच्छेद बतलाने के लिये निम्नलिखित ५५ प्रकृतियों का अधिक उपयोग हुवा है । उनके नाम क्रमश: निम्न प्रकार हैं
१ तीर्थंकर नामकर्म,
२८ एकेन्द्रिय
२ देवगति
३ देव मानुपूर्वी,
४ वैक्रिय शरीर,
५ वैक्रिय अंगोपांग
६ आहारक शरीर,
७ आहारक अंगोपांग,
देवायु,
६ नरकगति
:
मार्गणाओं में बंध-स्वामित्व प्रदर्शक यंत्र
१० नरक आनुपूर्वी,
११ नरक- आयु,
१२ सूक्ष्म,
१३ अपर्याप्त,
१४ साधारण,
१५ द्वीन्द्रिय
१६ नौन्द्रिय, १७ चतुरिन्द्रिय
J
१३ स्वायर क
२० आसप नामकर्म,
२१ नपुंसकवेद,
२२ मिथ्यात्व
२३ हुंड संस्थान,
२४ सेवा संहनन,
२५ अनन्तानुबन्धी क्रोध,
२६ अनन्वानुबन्धी मान,
२७ अनन्तानुबन्धी माया,
२८ अनन्तानुबन्धी लोभ,
२६ न्यग्रोध-परिमण्डल संस्थान,
३० सादि संस्थान,
३१ वामन संस्थान,
३२ कुब्ज संस्थान,
३३ ऋषभनाराच संहृतम,
३४ नाराचसंहनन