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## Second Karma Granth
This section describes the binding, arising, stimulation, and existence of different types of karmas in each of the Gunasthanas. The number and nature of these karmas will be explained in the following verses.
The names of the Gunasthanas are: Mithyatva, Sasvadan, Mise, Avirat, Desevirat, Pamatt, Apamatt, Niyatti, Aniyatti, Suhmusam, Khona, Sajogi, and Ajoigi.
**Explanation:** Before explaining the binding and other states of karmas in the Gunasthanas, it is necessary to mention the names of these Gunasthanas. This verse lists the names of the Gunasthanas. These names are:
1. Mithyatva
2. Sasvadan (Sasaadan)
3. Mith (Samyagmithyadristi)
4. Avirat Samyagdristi
5. Desevirat
6. Pamatt Samyata
7. Apamatt Samyata
8. Nivritti (Apuurvakaran)
9. Anivritti Vadar Samparaya
10. Sukshma Samparaya
11. Upashanta Moha-Vitaraag
12. Ksheena Mohaa-Vitaraag
13. Sayogikevali
14. Ajoigikevali
The word "Gunasthan" should be added to each of these names. For example, Mithyatva Gunasthan, etc.
The order of these Gunasthanas reflects a systematic progression of the soul's spiritual development. Each Gunasthan represents a higher state than the previous one, indicating...
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द्वितीय कर्मग्रन्थ
प्रत्येक गुणस्थान में कितनी-कितनी और किन-किन प्रकृतियों का बन्ध, उदय, उदीरणा और सत्ता हो सकती है, इसका वर्णन क्रमशः आगे की गाथाओं में किया जा रहा है।
गुणस्थानों के नाम मिच्चे मासण मोसे अविरय देसे पमत्त अपमत्ते। नियट्टि अनियट्टि सुहमुषसम खोण सजोगि अजोगि गुणा ॥२॥ गाथार्थ-मिथ्यात्व, सास्वादन, मिश्र, अविरत, देशविरत, प्रमत्तविरत, अप्रमत्तविरत, निवृत्ति, अनिवृत्ति, सूक्ष्म, उपशम, क्षीण, सयोगि और अयोगि-ये गुणस्थान हैं। विशेषार्थ—गुणस्थानों में कर्मों की वन्ध आदि अवस्थाओं को बतलाने से पहले गुणस्थानों के नामों का कथन करना जरूरी होने से इस गाथा में गुणस्थानों के नाम गिनाये हैं। इनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं -- (१) मिथ्यात्व,
(२) सास्वादन (सासादन) (३) मिथ (सम्यग्मिथ्यादृष्टि), (४) अविरत सम्यग्दृष्टि, (५) देशविरत,
(६) प्रमत्तसंयत, (७) अप्रमत्तसंयत,
(८) निवृत्ति (अपूर्वकरण), (९) अनिवृत्तिवादरसंपराय, (१०) सूक्ष्मसंपराय, (११) उपशान्तमोह-वीतराग, (१२) क्षीणमोह-वीतराग, (१३) सयोगिकेवली, (१४) अयोगिकेवली।
उक्त नामों में प्रत्येक के साथ गुणस्थान शब्द जोड़ लेना चाहिए। जैसे-मिथ्यात्व गुणस्थान आदि । ___ गुणस्थानों के नामों के क्रम में जीव के आध्यात्मिक विकास को व्यवस्थित प्रणाली के दर्शन होते हैं कि पूर्व-पूर्व के गुणस्थान की अपेक्षा