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________________ कर्मप्रकृतिः [२... [ २१०. करणत्रयेषु विशुद्धिः ] अधःप्रवृत्तकरणप्रथमसमयावारभ्य विशुद्धिः प्रतिसमयमनन्तगुण अप्यनिवृत्तिकरणचरमसमयं वर्तन्ते । [ २११. अधःप्रवृत्तकरणकाले विशुद्धिपरिणामः ] तत्राधःप्रवृत्तकरणकाले संख्यातलोकमात्रविशुद्धिपरिणामविकल्पा जघन्यमध्यमोत्कृष्टाः सन्ति। [ २१२. मधःप्रवृत्तकरणस्माङ्कसंदृष्टिः ] तपाइकसंवृष्ट्यायःप्रवृत्तकरणलक्षणमुच्यते--प्रथमसमयतानाजीवानां विशुद्धिपरिणामविकल्पानां जघन्यखण्डमिदम् ३९ । अस्मादद्वितीयं खण्ड विशेषाधिकम् ४० । तृतीयं विशेषाधिक ४१ । एवं परमचतुर्थखण्डं विशेषाधिक ४२ । हितोयसमये जघन्यखपडं प्रथमसमयजघन्य खण्डाविशेषाधिकम् ४७। ततो द्वितीयखण्डं विशेषाधिक ४१ । -- -.-.२१०. करणत्रयमें विशुद्धि अधःप्रवृत्तकरणके प्रथम समयसे आरम्भ करके विशुद्धि प्रति समय अनन्तगुणी होकर भो अनिवृत्तिकरणके चरम समय तक रहती है। २११. अधःप्रवृत्तकरण कालमें विशुद्धि परिणाम अधःप्रवृत्तकरणके समयमें असंख्यात लोकमात्र विशुद्धि परिणाम विकल्प जघन्य, मध्यम तथा उत्कृष्ट होते हैं। २१२. अनःप्रवृत्तकरणकी अंक संदृष्टि अंकसंदृष्टिको अपेक्षा अधःप्रवृत्तकरणका लक्षण कहते हैं-प्रथम समयमें नाना जीवोंके विशुद्धि परिणाम विकल्पोंका जघन्य खण्ड ३९ है। इससे द्वितीय खण्ड विशेष अधिक है ४० । इससे तीसरा विशेष अधिक है ४१ । इसी प्रकार अन्तिम चौथा खण्ड भी विशेष अधिक
SR No.090237
Book TitleKarmaprakruti
Original Sutra AuthorAbhaynanda Acharya
AuthorGokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages88
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size1010 KB
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