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________________ ५. -२१२] कमेप्रकृतिः ततस्तृतीयखण्डं विशेषाधिक ४२ । एवं चरमखण्डं विशेषाधिक ४३ । एवं तृतीयादिसमयेषु जघन्याविखण्डानि विशेषाधिकानि भवन्ति । ये केषांचिज्जीवानामुपरिमसमयपरिणमनवर्तिनां विशुद्धिपरिणामविकल्पा अपास्तनसमयतिनां केषांचिज्जीवानां विशुद्धिपरिणामविकल्पैस्सह सदृशास्सन्तीस्थधःप्रवृत्तकरणसंज्ञा युक्ता । तत्र प्रथमसमयजघन्यखण्डं चरमसमयसरमखण्डं च केनापि जघन्योत्कृष्टेन सदृशं न भवति, तथापि तवृद्धर्य मिरालरेषां सर्वेषां खानामपर्यधवच सादृश्यमस्तीति, तेनाधःप्रवृत्तकरणसंज्ञा न विरुध्यते । अस्मिन्नधःप्रवृत्तकरणे प्रशस्तप्रकृतीनामनुभागः प्रतिसमयेऽनन्तगुणं वर्धते, अप्रशस्तप्रकृतीनामनुभागः प्रतिसमयमनन्तगुणहीनो भवति, संख्यालसहस्रस्थितिबन्धापसरणानि भवन्ति, प्रतिसमयमनन्तगणवृद्धधा विशुद्धिश्च वर्तते, इत्येतानि चत्वार्यावश्यकानि सन्ति । है ४२ । द्वितीय समयमें जघन्य खण्ड प्रथम समयके जघन्य खण्डसे विशेष अधिक है ४० । उससे द्वितीय खण्ड विशेष अधिक है ४१ । उससे तृतीय खण्ड विशेष अधिक है ४२। इसी प्रकार अन्तिम चौथा खण्ड विशेष है ४३ 1 इस प्रकार तृतीय आदि समयोंमें तथा अन्तिम समयमें जघन्य आदि खण्ड विशेष अधिक होते हैं। जो किन्हीं जीवोंके ऊपरके समय में परिणमन करनेवाले विशुद्धि परिणाम विकल्प निम्न समयवर्ती किन्हीं जीवोंके बिशुद्धि परिणाम विकल्पोंके साथ समान होते हैं। इसलिए इसकी अधःप्रवृत्तकरण संज्ञा उचित है। यद्यपि प्रथम समयका जघन्य खण्ड तथा अन्तिम समयका अन्तिम खण्ड किसी भी जघन्य या उत्कृष्ट खण्डके सदृश नहीं होता, फिर भी उन दोनोंको छोड़कर अन्य सभी खण्डोंका ऊपर तथा नोचे सादृश्य है, इसलिए अधःप्रवृत्तकरण कहने में विरोध नहीं आता। इस अधःप्रवृत्तकरणमें-प्रशस्त प्रकृतियोंका अनुभाग प्रति समय अनन्तगुणा बढ़ता है तथा अप्रशस्त प्रकृतियोंका अनुभाग प्रति
SR No.090237
Book TitleKarmaprakruti
Original Sutra AuthorAbhaynanda Acharya
AuthorGokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages88
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size1010 KB
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